जलवायु परिवर्तन और न्यायिक सुधार दोनों ही हाल के दिनों में भारतीय संसद में चर्चा के प्रमुख विषय बने हैं। इन मुद्दों के उठने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
1. जलवायु परिवर्तन पर संसद में चर्चा क्यों?
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों पर इसका प्रभाव अधिक गंभीर हो सकता है। संसद में इस मुद्दे पर चर्चा के पीछे ये प्रमुख कारण रहे:
- अत्यधिक मौसम परिवर्तन: हाल के वर्षों में भारत में बाढ़, सूखा, हीटवेव और चक्रवातों की संख्या बढ़ी है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हो रहा है।
- कार्बन उत्सर्जन और नवीकरणीय ऊर्जा: सरकार पर जीवाश्म ईंधनों की निर्भरता कम करने और सौर व पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने का दबाव है।
- अंतरराष्ट्रीय संधियाँ: भारत, संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संधि (COP) और पेरिस समझौते का हिस्सा है, इसलिए देश की प्रतिबद्धताओं पर चर्चा जरूरी हो गई है।
- नीति और योजनाएँ: जलवायु संकट से निपटने के लिए “नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज” (NAPCC) जैसे सरकारी कार्यक्रमों की समीक्षा और सुधार पर चर्चा की गई।
2. न्यायिक सुधार का मुद्दा क्यों उठा?
भारत में न्यायपालिका के कामकाज में सुधार की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। संसद में इस मुद्दे पर चर्चा के पीछे ये प्रमुख कारण थे:
- मामलों का लंबित रहना: भारतीय न्यायपालिका में लाखों मामले लंबित हैं, जिससे लोगों को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया: कॉलेजियम प्रणाली को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की मांग उठी। सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में अधिक भागीदारी की वकालत की।
- डिजिटलीकरण और ई-कोर्ट: न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज और आसान बनाने के लिए ई-कोर्ट और ऑनलाइन सुनवाई की जरूरत पर जोर दिया गया।
- न्यायिक जवाबदेही: कुछ न्यायिक फैसलों और न्यायाधीशों की जवाबदेही को लेकर सवाल उठाए गए, जिससे न्यायिक सुधारों की आवश्यकता पर बहस तेज हुई।
निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन और न्यायिक सुधार दोनों ही भारत के विकास और आम नागरिकों के हितों से जुड़े अहम मुद्दे हैं। संसद में इन पर चर्चा होना दर्शाता है कि सरकार और विपक्ष दोनों ही इन विषयों को गंभीरता से ले रहे हैं। आने वाले समय में इन दोनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव हो सकते हैं।