दिल्ली के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्राणी उद्यान (एनज़ेडपी) को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। खबरों के अनुसार, एनज़ेडपी और रिलायंस समूह के ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (GZRRC) के बीच एक ज्ञान-साझा साझेदारी (Knowledge Sharing Partnership) के तहत समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर की तैयारी है।
कांग्रेस पार्टी ने इस संभावित समझौते पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि क्या यह कदम चिड़ियाघर को एक निजी समूह को सौंपने की दिशा में पहला कदम है?
कांग्रेस महासचिव और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बुधवार को सोशल मीडिया मंच ‘X’ पर इस मुद्दे को उठाते हुए कहा,
“दिल्ली चिड़ियाघर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आता है और अब वह वनतारा और गुजरात सरकार के साथ एक विशेष समझौते की दिशा में बढ़ रहा है। यह पूरा मामला गोपनीयता से भरा हुआ है, जो कई गंभीर सवाल खड़े करता है।”
उन्होंने पूछा कि क्या यह ‘सार्वजनिक से निजीकरण’ की ओर बढ़ने का संकेत है? जयराम रमेश ने सरकार से इस समझौते में पारदर्शिता बरतने की मांग की और कहा कि इस तरह की प्रक्रियाएं जनता की जानकारी और सहमति के बिना नहीं होनी चाहिए।
समझौते के मुख्य बिंदु:
- दिल्ली चिड़ियाघर के कर्मचारियों को प्रशिक्षण और कार्यशालाएँ
- GZRRC के साथ पशु चिकित्सा सहयोग, विशेष रूप से बड़े जानवरों के लिए
- चिड़ियाघर के आधुनिकीकरण में तकनीकी और अनुभव आधारित सहायता
- सर्वोत्तम प्रथाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान
पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार, यह केवल ज्ञान और तकनीकी सहयोग तक सीमित है, न कि प्रबंधन के हस्तांतरण तक। फिर भी, कांग्रेस पार्टी ने इसे “गोपनीय रूप से निजी हाथों में सौंपने की रणनीति” बताया और सरकार से पूरी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है।
विपक्ष की मांग:
- MoU की शर्तें सार्वजनिक की जाएँ
- संसद में इस मुद्दे पर स्पष्ट बयान दिया जाए
- चिड़ियाघर के प्रबंधन और संचालन में किसी भी तरह के निजी हस्तक्षेप पर रोक लगाई जाए
अब देखना होगा कि सरकार इस विवादित MoU पर क्या रुख अपनाती है और क्या वह इसे केवल तकनीकी सहयोग तक सीमित रखती है या इसमें आगे निजीकरण की संभावना भी निहित है।