बीजापुर जिले में पत्रकारिता जगत को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है। तीन दिन से लापता पत्रकार मुकेश चंद्राकर का शव एक ठेकेदार के फार्म हाउस के सेप्टिक टैंक में दफन मिला। इस निर्मम हत्या ने बस्तर क्षेत्र और पूरे देश में सनसनी फैला दी है। पुलिस मामले की जांच में जुटी है।
क्या है मामला?
मुकेश चंद्राकर, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बेबाक पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे, 1 जनवरी की रात संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गए थे। उनके भाई ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पुलिस ने उनकी फोन लोकेशन ट्रेस की, जिससे ठेकेदार के फार्म हाउस तक पहुंचा गया। डॉग स्क्वाड और फॉरेंसिक टीम की मदद से जमीन की खुदाई के बाद सेप्टिक टैंक से शव बरामद किया गया।
ठेकेदार पर आरोप
आरोप है कि ठेकेदार सुरेश चंद्राकर ने इस हत्या की साजिश रची। मुकेश ने अपने लेखों में ठेकेदार की सड़क निर्माण परियोजनाओं में गड़बड़ी को उजागर किया था। कहा जा रहा है कि इन खबरों के कारण ठेकेदार को 120 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जिससे नाराज होकर उसने यह कदम उठाया।
पत्रकारिता पर हमला
इस घटना ने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों को झकझोर कर रख दिया है। बस्तर क्षेत्र में जहां पहले नक्सली खतरा माने जाते थे, अब ठेकेदारों और व्यापारियों का आतंक बढ़ता दिख रहा है। इस घटना के बाद नेशनल मीडिया ने पुलिस पर दबाव बनाया है कि मामले की जांच तेजी से हो।
आंदोलन और मांगें
घटना के बाद पत्रकारों और स्थानीय लोगों ने बीजापुर में विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने सात सूत्रीय मांगें रखी हैं:
- ठेकेदार की संपत्तियां जब्त की जाएं।
- आरोपियों को फांसी की सजा दी जाए।
- सुरेश चंद्राकर की सुरक्षा हटाई जाए और उसके सभी टेंडर रद्द किए जाएं।
- बैंक खाते और पासपोर्ट सीज किए जाएं।
- अवैध फार्म हाउस को गिराया जाए।
- गंगालूर रोड स्थित प्लांट को सील किया जाए।
- एसपी बीजापुर को सस्पेंड किया जाए और मुकेश चंद्राकर को शहीद का दर्जा दिया जाए।
विरोध की लहर
शनिवार को बीजापुर में बंद और अस्पताल चौक पर सांकेतिक चक्का जाम किया गया। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर मांगें नहीं मानी गईं, तो अनिश्चितकालीन चक्का जाम होगा।
पुलिस की जांच और कार्रवाई
पुलिस ने अब तक इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि ठेकेदार की गिरफ्तारी के लिए प्रयास जारी हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा है।
निष्कर्ष
मुकेश चंद्राकर की हत्या ने न केवल बस्तर बल्कि पूरे देश में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना न केवल लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला है, बल्कि न्याय और पारदर्शिता की भी परीक्षा है। उम्मीद है कि दोषियों को जल्द ही कठोर सजा मिलेगी और इस घटना से पत्रकारों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे।