इंसान अपने घरौंदे को सपनों से सजाता है। उम्मीदों के दिए जलाकर उसे जगमगाता है। ठीक उसी तरह एक चिड़िया है, जो अपने आशियाने के शामियाने में जुगनुओं को सजाती है। ताकि रात को उसका घोंसला सबसे प्यारा और सुंदर दिखे। इस अनोखे काम को अंजाम देती है बया चिड़िया। गांव-देहात से गायब हो चुके बया के घोंसलों को कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग में अाज भी देखा जा सकता है। ये घोंसले किसी बल्ब या लाइट से नहीं बल्कि जुगनुओं से रोशन होते हैं। बया पहले अपने घोंसले में गीली मिट्टी लगाती है और बाद में जुगनू लाकर उसमें चिपका देती है। यही जुगनू रात में चमकते हैं और बया इन घरौंदों में उम्मीदों भरी अगली सुबह होने का इंतजार करती है।

सभी चिड़िया ज्यादातर दो डालों के बीच में अपना घोंसला बनाती हैं, लेकिन बया एक डाली पर इस तरीके से अपना घोंसला बनाती है कि वो हर वक्त झूलता रहता है। इसके दो फायदे हैं। एक तो ऐसे घोंसलों में दूसरे पक्षियों के आने का खतरा कम रहता है और दूसरा ये कि बया और उसका परिवार झूला झूलने का भी मजा लेता है। बया एक ऐसे नस्ल की चिड़िया है, जहां नर द्वारा कर्म किए जाने की परंपरा कायम है। नर बया पहले घोंसला बनाता है और जब घोंसला आधे से ज्यादा बन जाता है तो वो खास तरह की आवाज निकालकर मादाओं को आकर्षित करता है। मादाएं भी काफी सूझबूझ से अपने जीवन साथी को चुनने का फैसला लेती हैं। मादा बया कई घोसलों में जाती हैं और उसमें बैठकर पहले उसे चेक करती है।
तीन मंजिल तक बनाती है घोंसला
मादा बया जब संतुष्ट हो जाती है कि घोंसला उसके और उसके आने वाले परिवार के लिए सुरक्षित होगा तभी वो नर बया का निमंत्रण स्वीकार करती है। बया के घोंसले सुंदरता के साथ-साथ काफी मजबूत होते हैं। ये जमीन पर पड़े खर-पतवार नहीं बल्कि मजबूत किस्म के ताजे खर-पतवार से बनते हैं। बया अपनी विशेष तकनीक से घोंसले की बिनाई करती है। ज्यादातर देखने को मिलता है कि बया अपने परिवार की जनसंख्या के अनुसार घोंसले को एक से तीन मंजिला तक बना डालती है, जोकि देखने में सुंदर और मजबूत होता है।

बुनकर प्रजाति का यह नन्हा सा पक्षी, घास के छोटे-छोटे तिनको और पत्तियों को बुनकर लालटेन की तरह लटकता बेहद ही खुबसूरत घोंसले का निर्माण करता है इसलिए इसे बुनकर पक्षी और ट्रेलर बर्ड भी कहा जाता है, इसी कुशलता के कारण इन्हें पक्षियों का इंजीनियर कहा जाना तनिक भी गलत न होगा। बया प्रजाति के पक्षी पूरे भारतीय उपमहादीप और दक्षिण पूर्वी एशिया में देखने को मिलते है।