लखनऊ। उत्तर प्रदेश के दुधवा नेशनल पार्क, जो अपनी समृद्ध जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए देशभर में प्रसिद्ध है, अब एक नई पहल के साथ पर्यटन के नए आयाम छूने जा रहा है। उत्तर प्रदेश ईको-टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड ने यहां के स्थानीय थारू जनजातीय समुदाय को पर्यटन से जोड़ने की अनोखी रणनीति तैयार की है। इसका उद्देश्य न केवल पर्यटन को समृद्ध करना है, बल्कि थारू समाज की संस्कृति, खानपान, हस्तशिल्प और जीवनशैली को बढ़ावा देकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाना भी है।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर यह प्रयास किया जा रहा है ताकि दुधवा और इसके आस-पास के क्षेत्रों में पर्यटन की अपार संभावनाओं को ज़मीनी स्तर पर उतारा जा सके। इसी दिशा में पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र के नेतृत्व में बोर्ड के अधिकारियों ने हाल ही में लखीमपुर खीरी जिले के थारू बहुल गांवों का दौरा किया।
थारू संस्कृति का पर्यटन से मेल
पार्क के आसपास बसे नौ गांवों में फैली थारू जनजाति, जो सदियों से जंगलों और प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीवन जीती आ रही है, अब अपने पारंपरिक ज्ञान और जीवनशैली को पर्यटन का हिस्सा बनाकर नए अवसरों की ओर अग्रसर है। थारू समुदाय के पारंपरिक व्यंजन जैसे – ढिकरी, खड़िया, कपुआ – अब रिसॉर्ट्स और होटलों में पर्यटकों को परोसे जाएंगे, ताकि वे स्थानीय स्वाद से परिचित हो सकें।

इसके साथ ही, थारू शिल्प जैसे मूंज, कास, जूट और सूत से बने हस्तनिर्मित उत्पाद अब शिल्पग्रामों और स्टालों के माध्यम से बेचे जाएंगे। इन उत्पादों को केवल वस्तुएं नहीं, बल्कि जीवित परंपराओं की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और होमस्टे का विस्तार
ईको-टूरिज्म बोर्ड अब थारू जनजाति के लोकनृत्य और संगीत – सखिया, देवली, धमार, झुमरा और होरी गीत – को भी पर्यटक अनुभव का हिस्सा बना रहा है। सांस्कृतिक संध्या और कार्यक्रमों के माध्यम से इन परंपराओं को एक मंच दिया जाएगा, जिससे कलाकारों को पहचान और आमदनी दोनों मिलेगी।
पर्यटकों के लिए होमस्टे व्यवस्था को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, जहां वे पारंपरिक घरों में रहकर स्थानीय जीवनशैली को नजदीक से समझ सकेंगे। यह न केवल एक भावनात्मक जुड़ाव का माध्यम बनेगा, बल्कि ग्रामीण आजीविका को भी मजबूती देगा।

ज्ञान के धनी हैं थारू, वन्य क्षेत्र के रक्षक
दुधवा टाइगर रिजर्व जहां एक ओर बाघ, गैंडा और बारहसिंघा जैसे वन्य जीवों के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर यह थारू जनजाति की परंपराओं और जैविक ज्ञान का भी केंद्र है। इनके पास औषधीय पौधों, मौसमी बदलाव और वन संरक्षण की गहरी समझ है। इसी वजह से वे जंगलों के प्राकृतिक रक्षक भी माने जाते हैं।
मंत्री जयवीर सिंह ने कहा, “जब थारू जनजाति की संस्कृति को पर्यटन से जोड़ा जाएगा, तो यह एक समग्र अनुभव बन जाएगा। इससे पर्यटक न केवल प्रकृति से जुड़ेंगे बल्कि स्थानीय समुदाय को भी आत्मनिर्भरता की दिशा में नई राह मिलेगी।”