नई दिल्ली। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में इसे अबूझ मुहूर्त माना गया है, जिसका अर्थ है – इस दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना पंचांग देखे किया जा सकता है।
इस पावन दिन को त्रेता युग की शुरुआत का दिन भी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किए गए पुण्य और कार्यों का फल कभी क्षय नहीं होता – इसलिए इसे ‘अक्षय’ तृतीया कहा जाता है।

मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की होती है पूजा
इस दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि विधिवत पूजा करने से देवी लक्ष्मी अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं और घर में सुख-समृद्धि, धन और शांति का वास होता है।

अक्षय तृतीया के विशेष उपाय:
पंखा, छाता, शक्कर और सत्तू का दान करें – इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और आरोग्यता का आशीर्वाद देती हैं।
मां लक्ष्मी को केसर व हल्दी का तिलक लगाएं – यह उपाय आर्थिक संकट से मुक्ति दिलाता है।
जल से भरा कलश किसी जरूरतमंद को दान करें – इससे धन-धान्य में वृद्धि होती है।
घर के मंदिर में एकाक्षी नारियल स्थापित करें – यह समृद्धि और संकट निवारण का संकेत माना जाता है।
पितरों का तर्पण करें – इससे पितृ दोष समाप्त होता है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भी श्रद्धालु इस दिन सच्चे मन से उपवास, पूजा और दान-पुण्य करते हैं, उनके जीवन में कभी भी धन और सौभाग्य की कमी नहीं होती।