बैंकॉक। थाईलैंड की राजनीति उस समय उथल-पुथल में आ गई जब प्रधानमंत्री पैटोंगटर्न शिनवात्रा को एक विवादास्पद फोन कॉल लीक मामले में संवैधानिक अदालत ने उनके पद से निलंबित कर दिया। यह कॉल थाईलैंड और कंबोडिया के सीमा विवाद के संदर्भ में थी, जिसमें शिनवात्रा ने कंबोडियाई सीनेट अध्यक्ष हुन सेन से बातचीत की थी। जब यह कॉल सार्वजनिक हुई, तो देशभर में इसका तीव्र विरोध हुआ और मामला अदालत तक पहुंच गया।
अदालत का बड़ा फैसला
संवैधानिक अदालत ने 7-2 के बहुमत से निर्णय देते हुए प्रधानमंत्री शिनवात्रा को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। कोर्ट ने उन्हें 15 दिन के भीतर साक्ष्य प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं और साफ कर दिया है कि जब तक जांच पूरी नहीं होती, वह अपने पद पर नहीं रह सकतीं। इस बीच, संभावना जताई जा रही है कि उप प्रधानमंत्री सुरिया जुंगरुंगरुआंगकिट को कार्यवाहक प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी जा सकती है।

सीमा विवाद बना कारण
इस राजनीतिक भूचाल की पृष्ठभूमि में 28 मई को थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर हुई हिंसक झड़प है, जिसमें एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई थी। इसके बाद 15 जून को प्रधानमंत्री शिनवात्रा ने तनाव कम करने की कोशिश में हुन सेन से बात की थी, लेकिन उनकी यह कूटनीतिक पहल विवाद का कारण बन गई जब बातचीत लीक हो गई और उन्हें नैतिकता के उल्लंघन का आरोपी बनाकर अदालत में घसीटा गया।

शिनवात्रा का पक्ष
निलंबन के बाद शिनवात्रा ने बयान जारी कर कहा कि उन्होंने यह बातचीत देश में शांति बनाए रखने और सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की थी। उन्होंने कहा कि वह कानूनी प्रक्रिया का पूरा सम्मान करेंगी और अपने बचाव में हर आवश्यक कदम उठाएंगी। साथ ही उन्होंने समर्थकों का आभार जताया और फोन कॉल लीक से उत्पन्न असहजता के लिए देशवासियों से माफी भी मांगी।

राजनीतिक अस्थिरता की आशंका
यह मामला अब सिर्फ एक कानूनी विवाद नहीं बल्कि थाईलैंड की राजनीतिक स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। देश की जनता, प्रशासन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें अब अदालत की आगामी कार्रवाई और थाईलैंड की राजनीतिक दिशा पर टिकी हैं।