मुंबई, 5 जुलाई 2025 — महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार को एक ऐतिहासिक मोड़ देखने को मिला जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे करीब दो दशक बाद एक साथ मंच पर नजर आए। ‘आवाज मराठीचा’ नामक संयुक्त विजय रैली में दोनों नेताओं ने मराठी अस्मिता, हिंदी थोपने के खिलाफ विरोध, और भाजपा की नीतियों पर जमकर हमला बोला।
रैली का आयोजन महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्कूलों में कक्षा 1 से हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने संबंधी आदेश को वापस लेने की जीत के रूप में किया गया था।
उद्धव ठाकरे का भाजपा पर हमला
शिवसेना (उद्धव गुट) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा को सीधे चेतावनी देते हुए कहा, “हिंदुत्व पर आपका कोई एकाधिकार नहीं है। हम सबसे गहरी जड़ों वाले हिंदू हैं। हमें हिंदू धर्म सिखाने की जरूरत नहीं है।”
उद्धव ने 1992 के मुंबई दंगों का ज़िक्र करते हुए कहा, “तब मराठी लोगों ने ही हिंदुओं की रक्षा की थी।”
उन्होंने स्पष्ट कहा कि, “हमें हिंदुस्थान मंजूर है, हिंदू भी मंजूर हैं… लेकिन हिंदी थोपना हमें मंजूर नहीं। आपकी सात पीढ़ियां बर्बाद हो जाएं, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।”
राज ठाकरे की तीखी टिप्पणी
मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को घेरते हुए चुटकी ली और कहा, “आज बीस साल बाद, मैं और उद्धव एक मंच पर आए हैं — ये बालासाहेब नहीं कर सके, लेकिन फडणवीस ने करवा दिया।”
राज ठाकरे ने कहा कि उन्हें हिंदी भाषा से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन जबरन थोपने का प्रयास स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, “मराठा साम्राज्य के दौर में हमने कई राज्यों पर राज किया, लेकिन मराठी किसी पर नहीं थोपी। अब हिंदी थोपने का प्रयास हो रहा है, ताकि मुंबई को महाराष्ट्र से अलग किया जा सके।”
राजनीतिक संदेश और भविष्य की दिशा
उद्धव ने यह भी कहा कि, “हम साथ आए हैं और साथ ही रहेंगे। हमारा एक मंच पर आना हमारे भाषणों से ज्यादा अहम है।” दोनों नेताओं की इस एकता को राजनीतिक गठबंधन की ओर पहला कदम माना जा रहा है, जिससे महाराष्ट्र की सत्ता में नया समीकरण बन सकता है।
यह रैली न केवल मराठी अस्मिता की मुखर अभिव्यक्ति थी, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एक शक्तिशाली राजनीतिक संदेश भी थी कि हिंदी बनाम मराठी का मुद्दा फिर से केंद्रीय राजनीति में जगह बना रहा है।