नई दिल्ली। 2 अक्टूबर 2025 को देशभर में दशहरा धूमधाम से मनाया जाएगा, जो असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। इस पर्व का केंद्र बिंदु है लंकापति रावण, जिसे ‘दशानन’ के नाम से जाना जाता है। रावण के 10 सिर न केवल उसकी शक्ति और विद्वत्ता का प्रतीक हैं, बल्कि पौराणिक और दार्शनिक अर्थों में भी गहरे संदेश छिपाए हुए हैं। आइए जानते हैं रावण को 10 सिर कैसे मिले और उनके नाम व अर्थ क्या हैं।
रावण के 10 सिरों का रहस्य
रावण को दशानन कहे जाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं। उसके 10 सिर उसकी बौद्धिक, शारीरिक और मायावी शक्तियों के साथ-साथ मानवीय कमजोरियों का प्रतीक माने जाते हैं। दशहरा के अवसर पर रावण का पुतला जलाकर इन नकारात्मक प्रवृत्तियों को नष्ट करने का संदेश दिया जाता है।
रावण के 10 सिरों के नाम और उनका अर्थ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रावण के दस सिर उसकी नकारात्मक प्रवृत्तियों और मानसिक शक्तियों का प्रतीक माने जाते हैं। हर सिर एक अलग भाव को दर्शाता है:
- काम – वासनाओं और अनैतिक इच्छाओं का असंयम
- क्रोध – बिना सोचे-समझे गुस्सा होना
- लोभ – असीमित इच्छाओं और लालच का प्रभाव
- मोह – भौतिक वस्तुओं और मायाजाल में फंसना
- मद – अहंकार और घमंड
- मत्सर – दूसरों की सफलता से ईर्ष्या करना
- घृणा – नफरत और वितृष्णा
- भय – डर का प्रतीक
- अहंकार – स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझना
- भ्रष्टाचार – सत्य और नैतिकता से भटकना

रावण को 10 सिर कैसे मिले?
1. भगवान शिव की कथा
कहा जाता है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। जब भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए तो रावण ने एक-एक करके अपने सिर काटकर अर्पित करने शुरू किए। हर बार उसका सिर वापस आ जाता। नौ बार ऐसा करने के बाद जब वह दसवां सिर काटने चला, तो शिवजी प्रकट हुए और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे ‘दशानन’ होने का वरदान दिया।
2. ब्रह्मा जी की कथा
रामायण के अनुसार, रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए दस बार अपना सिर अर्पित किया था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे 10 सिरों का वरदान दिया, जो उसकी बुद्धिमत्ता और विद्वत्ता का प्रतीक बने। हालांकि अमरता का वरदान उसे नहीं मिला, लेकिन उसकी नाभि में अमृत का वरदान प्राप्त हुआ।
3. ज्ञान और शास्त्रों का प्रतीक
रावण केवल योद्धा ही नहीं बल्कि महान विद्वान भी था। उसे चारों वेद और छह शास्त्रों का गहरा ज्ञान था। उसके दस सिर उसके इसी व्यापक ज्ञान का प्रतीक थे।
4. मायावी शक्ति
कुछ मान्यताओं में कहा गया है कि रावण के 10 सिर वास्तव में उसकी मायावी शक्ति का हिस्सा थे। वह अपनी शक्ति से कई सिरों का भ्रम पैदा कर सकता था।
5. नकारात्मक प्रवृत्तियों का प्रतीक
दूसरे मत के अनुसार, रावण के 10 सिर वास्तव में 10 नकारात्मक भावनाओं का प्रतीक थे—काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मत्सर, घृणा, भय, भ्रष्टाचार और द्वेष। दशहरे पर रावण का दहन इन नकारात्मक प्रवृत्तियों को जलाकर नष्ट करने का संदेश देता है।

रावण को ‘दशानन’ कहे जाने के पीछे कई कथाएं हैं कभी वरदान, कभी ज्ञान, तो कभी उसकी नकारात्मक प्रवृत्तियां। लेकिन एक बात साफ है कि उसके 10 सिर हमें यह याद दिलाते हैं कि इंसान के भीतर की बुराइयां ही उसके पतन का कारण बनती हैं। दशहरे का पर्व इन्हीं बुराइयों को त्यागकर जीवन में सत्य और धर्म अपनाने का संदेश देता है।