गाँव के एक छोटे से मोहल्ले में दो दोस्त रहते थे — आकाश और राजू। दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के बेहद करीब थे। एक साथ स्कूल जाना, साथ खेलना, एक ही थाली में खाना और एक-दूसरे के बिना कोई काम न करना — ये उनकी दोस्ती की खासियत थी।
गर्मियों की छुट्टियों में जब सूरज सिर पर होता और सब अपने घरों में छिप जाते, तब आकाश और राजू गाँव के बाहर नीम के पेड़ के नीचे छांव में बैठकर कंचे खेलते, आम के पेड़ पर चढ़ते, और मिट्टी से खिलौने बनाते। कभी-कभी वे एक पुराना टेप रिकॉर्डर लाते और गाने सुनते हुए पूरे गाँव में घूमते रहते।
एक दिन दोनों ने कसम खाई — “हम बड़े होकर भी ऐसे ही साथ रहेंगे, कभी अलग नहीं होंगे!”
समय बीता, स्कूल खत्म हुआ। आकाश शहर पढ़ने चला गया और राजू अपने पिता के खेतों में काम करने लगा। दूरियाँ बढ़ीं, पर यादें नहीं मिटीं।
करीब 10 साल बाद, आकाश एक बड़ी कंपनी में नौकरी करके पहली बार गाँव लौटा। जब वह अपने पुराने नीम के पेड़ के पास पहुंचा, तो देखा कि वहीं एक आदमी बैठा हुआ मिट्टी के खिलौने बना रहा है। वो राजू था।
दोनों की आँखों में आंसू आ गए। बिना कुछ कहे गले लग गए।
राजू बोला, “तेरे बिना कंचों में मज़ा नहीं आया दोस्त…”
आकाश मुस्कराया, “और मेरे बिना नीम की छांव अधूरी रही…”
सीख:
बचपन की दोस्ती वक्त और दूरी से नहीं मिटती। वो नीम के पेड़ की तरह होती है — सालों बाद भी वहीं खड़ी, छांव देती हुई।