वेटिकन सिटी : ईस्टर सोमवार की सुबह वेटिकन से एक बेहद भावुक कर देने वाली खबर सामने आई – पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे पोप ने आज सुबह 7:35 बजे वेटिकन के कासा सांता मार्टा स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। वेटिकन केमरलेंगो कार्डिनल केविन फेरेल ने इस दुखद समाचार की पुष्टि की और कहा, “आज रोम के बिशप फ्रांसिस पिता के घर लौट गए। उनका संपूर्ण जीवन प्रभु और उनके चर्च की सेवा को समर्पित रहा।”
एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व
17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में जन्मे जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो, जिन्हें दुनिया पोप फ्रांसिस के नाम से जानती है, इतिहास के पहले जेसुइट पोप, पहले अमेरिकी पोप और ग्रेगरी III (8वीं शताब्दी) के बाद पहले गैर-यूरोपीय पोप बने। 1958 में एक गंभीर बीमारी से उबरने के बाद उन्होंने जेसुइट समुदाय से जुड़ने का निर्णय लिया। 2013 में पोप बेनेडिक्ट XVI के इस्तीफे के बाद उन्हें कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च पद पर आसीन किया गया। 12 वर्षों तक उन्होंने चर्च का नेतृत्व किया।

भारत के कार्डिनल भी लेंगे नए पोप के चुनाव में भाग
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद अब “पैपल कॉन्क्लेव” की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसमें नए पोप का चयन किया जाएगा। इस प्रक्रिया में केवल 80 वर्ष से कम आयु के कार्डिनल्स ही भाग ले सकते हैं। वेटिकन के हालिया आंकड़ों के अनुसार, ऐसे 135 कार्डिनल मतदान के पात्र हैं। भारत के गोवा और दमन के आर्कबिशप कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ भी इस ऐतिहासिक चुनाव में भाग लेंगे। उन्होंने पोप फ्रांसिस को “शांति, सामाजिक न्याय और अंतरधार्मिक संवाद के प्रतीक” के रूप में याद किया।

नए पोप के दावेदार कौन?
पोप फ्रांसिस के बाद चर्च के नेतृत्व के लिए कई नामों पर चर्चा हो रही है।
- कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन (70) – वेटिकन के गृह सचिव और पोप फ्रांसिस के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक।
- कार्डिनल पीटर एर्डो (72) – यूरोप के बिशप सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष, रूढ़िवादी विचारधारा के लिए जाने जाते हैं।
- कार्डिनल मातेओ ज़ुप्पी (69) – चर्च के प्रगतिशील चेहरों में गिने जाते हैं, समावेशिता और संवाद के पक्षधर।
- कार्डिनल रेमंड बर्क (70) – चर्च के सबसे रूढ़िवादी नेताओं में से एक, पोप फ्रांसिस की नीतियों के आलोचक।
- कार्डिनल लुइस एंटोनियो टैगले (67) – यदि चुने गए तो बन सकते हैं पहले एशियाई पोप, LGBTQ और तलाकशुदा कैथोलिकों के अधिकारों पर चर्च की नीति में बदलाव के पक्षधर।
एक युग का अंत, नई शुरुआत की प्रतीक्षा
पोप फ्रांसिस का कार्यकाल कैथोलिक चर्च के लिए एक बदलाव और सुधार का युग रहा। उन्होंने समावेश, पारदर्शिता, और सामाजिक न्याय की दिशा में कई कदम उठाए। उनका जीवन और सेवा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। अब जब उनके निधन के साथ एक युग का अंत हुआ है, दुनिया की नजरें वेटिकन पर टिकी हैं कि अगला पोप कौन होगा जो चर्च को नई दिशा देगा।
