वैश्विक राजनीति और आर्थिक तनावों के बीच भारत और अमेरिका अपने रक्षा सहयोग को और मजबूती देते दिख रहे हैं। अलास्का के फोर्ट वेनराइट में दोनों देशों की सेनाओं के बीच ‘युद्ध अभ्यास’ का 21वां संस्करण जारी है। 1 से 14 सितम्बर तक चलने वाले इस संयुक्त सैन्य अभ्यास में भारतीय सेना की मद्रास रेजीमेंट की एक बटालियन और अमेरिकी सेना की 1st बटालियन, 5th इन्फैंट्री रेजीमेंट (आर्कटिक वुल्व्स ब्रिगेड, 11वीं एयरबोर्न डिवीजन) भाग ले रही है।
सामरिक रिश्तों का आईना
यह अभ्यास केवल प्रशिक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच दोनों देशों की साझेदारी का संदेश भी देता है। हाल ही में अमेरिकी नौसेना का सहयोग पोत यूएसएस फ्रैंक केबल चेन्नई पहुँचा था, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में पनडुब्बियों और सतही पोतों को सेवा व रसद सहयोग प्रदान करता है। ऐसे दौरों से साफ होता है कि अमेरिका-भारत सुरक्षा साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है।
अभ्यास का फोकस
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, युद्ध अभ्यास के दौरान सैनिक हेलिबोर्न ऑपरेशन, पर्वतीय युद्ध, ड्रोन और काउंटर-ड्रोन तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, घायलों की निकासी और युद्धक्षेत्र में चिकित्सा सहायता जैसे विषयों पर संयुक्त प्रशिक्षण कर रहे हैं। इसके अलावा दोनों सेनाएँ सूचना युद्ध, संचार और रसद प्रबंधन जैसे आधुनिक युद्धकला के पहलुओं पर भी वर्कशॉप आयोजित कर रही हैं।
पुराने मतभेद, नई साझेदारी
व्यापार, शुल्क और ऊर्जा आयात को लेकर भारत-अमेरिका के बीच मतभेद बने हुए हैं। भारत का रूस से तेल और हथियार खरीदना अमेरिका को असहज करता है, जबकि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर कायम है। इसके बावजूद रक्षा क्षेत्र में सहयोग रुकने के बजाय और तेज़ हुआ है।
रक्षा सौदे और समझौते
पिछले एक दशक में दोनों देशों के बीच कई अहम रक्षा समझौते हुए हैं—
- LEMOA (2016) – लॉजिस्टिक्स सहयोग
- COMCASA (2018) – सुरक्षित संचार साझेदारी
- BECA (2020) – जियो-स्पेशल डाटा साझाकरण
इसके अलावा, भारत ने अमेरिका से MH-60R सीहॉक हेलिकॉप्टर, M777 होवित्ज़र और सिग सॉयर राइफलें खरीदी हैं। वर्तमान में GE F-414 इंजन निर्माण और MQ-9B UAVs की आपूर्ति पर भी वार्ता जारी है।
रणनीतिक संकेत
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अभ्यास केवल सैन्य क्षमता का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है—कि आर्थिक मतभेदों और वैश्विक तनावों के बावजूद भारत और अमेरिका सुरक्षा साझेदारी को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।
अनुत्तरित प्रश्न
हालाँकि सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का वास्तविक सम्मान करेगा? क्या भारत रूस और अमेरिका दोनों के साथ संतुलन बनाए रख पाएगा? और क्या यह सहयोग केवल हथियारों की खरीद तक सीमित रहेगा या फिर इसमें तकनीकी हस्तांतरण भी शामिल होगा?
निष्कर्ष
स्पष्ट है कि ‘युद्ध अभ्यास 2025’ केवल सैन्य कवायद नहीं, बल्कि एक बड़ा संदेश है— भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का सामना केवल साझेदारी और विश्वास से ही किया जा सकता है।