कुछ समय पहले तक महानदी के किनारे की रेतीली, अनुपजाऊ भूमि ग्रामीणों के लिए बेकार मानी जाती थी। खेती योग्य न होने के कारण इस पर घास भी मुश्किल से उगती थी। लेकिन इसी जमीन ने अब 368 महिलाओं के जीवन में नई उम्मीद और नई कमाई का रास्ता खोल दिया है। धमतरी जिले की ये महिलाएं आज अपनी बदली हुई आर्थिक स्थिति पर गर्व महसूस कर रही हैं।
यह परिवर्तन वन मंत्री श्री केदार कश्यप के निर्देशन में छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के अध्यक्ष श्री विकास मरकाम और जिला प्रशासन की संयुक्त पहल से संभव हो सका। अनुपयोगी रेतिली भूमि को आजीविका से जोड़ने के प्रयास में समाधान मिला औषधीय पौधा खस की खेती के रूप में — जो इसी तरह की जमीन में आसानी से पनपता है और बाजार में जिसकी लगातार मांग बनी रहती है।
90 एकड़ में महिलाओं ने शुरू की औषधीय खेती
जुलाई–अगस्त के दौरान जिले के 20 ग्रामों की 35 महिला स्व-सहायता समूहों ने 90 एकड़ भूमि पर खस का रोपण किया। मंदरौद, दलगहन, गाडाडीह, सोनवारा, देवरी, मेघा सहित विभिन्न गांवों की महिलाओं ने पहली बार औषधीय खेती की दिशा में कदम बढ़ाया।
कम लागत में अधिक लाभ
औषधि पादप बोर्ड ने रोपण के लिए 17 लाख खस स्लिप्स निःशुल्क उपलब्ध कराईं। साथ ही विशेषज्ञ संस्थाओं द्वारा निरंतर तकनीकी मार्गदर्शन दिया गया। महिलाओं को धीरे-धीरे समझ आया कि यह खेती न सिर्फ आसान है, बल्कि कम लागत में अच्छा लाभ देने वाली भी है।
बहुपयोगी है खस
खस की जड़ों से बनता सुगंधित तेल वैश्विक बाजार में अत्यधिक मूल्यवान माना जाता है। पत्तियों और बची जड़ों से हस्तशिल्प भी तैयार होते हैं। इसके अलावा खस मिट्टी कटाव रोकता है और भूमि में जैविक कार्बन बढ़ाकर उर्वरकता सुधारता है।
बाजार की चिंता भी हुई दूर
शुरुआत में महिलाओं को चिंता थी कि फसल उगाने के बाद बाजार कहां मिलेगा। इस समस्या को बोर्ड ने 100 रुपये प्रति किलो सूखी जड़ की बायबैक गारंटी देकर दूर किया। इससे प्रति एकड़ 50,000 से 75,000 रुपये की संभावित आय सुनिश्चित मानी जा रही है।
महिलाएं बनीं परिवार की नई शक्ति
खस की फसल 12 से 15 महीनों में तैयार होगी, लेकिन महिलाओं के मन में अभी से उत्साह है। उन्हें विश्वास है कि इससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और परिवार को स्थायी सहारा मिलेगा।
महिला सशक्तिकरण की मिसाल
राज्य सरकार औषधीय पौधों को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से पहल कर रही है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जिला प्रशासन इस परियोजना के क्रियान्वयन में सक्रिय सहयोग दे रहा है। यह पहल अब सिर्फ खेती का मॉडल नहीं रही, बल्कि महिला सशक्तिकरण की नई मिसाल बन चुकी है।
अनुपजाऊ भूमि को उपयोगी बनाकर आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ती ये 368 महिलाएं आज धमतरी जिले की नई पहचान बन रही हैं।
