नई दिल्ली : धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में आषाढ़ अमावस्या का विशेष स्थान है। यह दिन पितरों की आत्मा की शांति और भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित होता है। हर महीने की अमावस्या की तरह, आषाढ़ की अमावस्या भी स्नान, दान, तर्पण और पूजा-पाठ के लिए बेहद शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन किए गए धार्मिक कार्यों से पितर प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है।
तिथि और शुभ मुहूर्त:
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 24 जून 2025 को शाम 6:59 बजे आरंभ होगी और 25 जून को दोपहर 4:00 बजे समाप्त होगी। चूंकि अमावस्या की उदयातिथि 25 जून को है, इसलिए इस दिन आषाढ़ अमावस्या मनाई जाएगी। इस दिन सूर्योदय सुबह 5:25 बजे और सूर्यास्त शाम 7:23 बजे होगा। साथ ही वृद्धि योग, वेशी योग, गुरु आदित्य योग और गजकेसरी योग जैसे कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जो पूजा और दान के लिए अत्यंत लाभकारी हैं।
पूजा विधि:
इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें। यदि संभव हो तो गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें, अन्यथा स्नान जल में गंगाजल मिलाकर घर पर स्नान करें। स्नान के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और शिवलिंग पर जल, दूध और काले तिल से अभिषेक करें। पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करें। पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें और दीपदान करें। उपवास रखना भी शुभ माना गया है।
विशेष उपाय:
इस दिन किए गए कुछ विशेष उपाय जीवन की बाधाओं को दूर करने और पितृ दोष से मुक्ति दिलाने वाले माने जाते हैं। जरूरतमंदों को भोजन कराना, कुत्तों, कौवों और गायों को अन्न खिलाना, चीटियों को आटा और शक्कर देना अत्यंत पुण्यकारी होता है। पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर पितरों के लिए प्रार्थना करें। शिवलिंग का अभिषेक काले तिल, दूध और जल से करने से शनि दोष भी शांत होता है।
आषाढ़ अमावस्या का आध्यात्मिक महत्व:
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पितर धरती पर आते हैं और उनके लिए किए गए तर्पण और दान सीधे उन तक पहुंचते हैं। इसलिए यह दिन उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर माना गया है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। यह दिन न केवल पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर है, बल्कि आत्मिक और सामाजिक शुद्धि का भी प्रतीक है।