वास्तु पुरुष के जन्म की कथा: पौराणिक मान्यता और महत्व
वास्तु पुरुष का उल्लेख भारतीय पुराणों में मिलता है, जो वास्तु शास्त्र का एक अभिन्न अंग है। इस कथा में देवताओं, असुरों और ब्रह्मांडीय शक्तियों के बीच संघर्ष का वर्णन है। आइए विस्तार से समझते हैं वास्तु पुरुष के जन्म की कथा और उनके महत्व को।
1. वास्तु पुरुष का जन्म
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस दौरान अंधकासुर से लड़ाई के समय भगवान शिव के माथे से पसीने की कुछ बूंदें धरती पर गिरीं। इन बूंदों से एक विशालकाय प्राणी उत्पन्न हुआ। यह प्राणी इतना भूखा था कि उसने ब्रह्मांड में हर चीज को खाना शुरू कर दिया। उसकी इस भूख और विध्वंसक शक्ति से देवता भयभीत हो गए।
2. ब्रह्मा की शरण में देवता
देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की और इस समस्या का समाधान मांगा। तब ब्रह्मा ने अष्ट दिकपाल (आठ दिशाओं के संरक्षक) को आदेश दिया कि उस विशालकाय प्राणी को धरती पर दबा दें। इस प्रक्रिया में वास्तु पुरुष को इस प्रकार रखा गया कि उनका सिर उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) की ओर और पैर दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) की ओर रहे।
3. वास्तु पुरुष का आशीर्वाद
जब वास्तु पुरुष ने ब्रह्मा से अपनी भूख और सजा का कारण पूछा, तो ब्रह्मा ने उन्हें आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा ने कहा कि जब भी धरती पर कोई संरचना बनाई जाएगी, वह तुम्हारा भोजन बनेगी। अगर उस भूखंड के मालिक ने तुम्हारी पूजा की और तुम्हारे अनुसार निर्माण किया, तो तुम और तुम्हारे साथ मौजूद देवता उस स्थान की ऊर्जा की रक्षा करेंगे।
4. वास्तु मंडल: 45 ऊर्जा क्षेत्र
ब्रह्मा ने वास्तु पुरुष को 45 ऊर्जा क्षेत्रों में विभाजित किया, जिन्हें वास्तु मंडल कहा जाता है।
- तीन मुख्य प्रतीक:
- वास्तु – विवेक का प्रतीक
- पुरुष – शरीर का प्रतीक
- मंडल – आत्मा का प्रतीक
वास्तु पुरुष के शरीर के अंग घर के विभिन्न स्थानों को दर्शाते हैं।
- ईशान कोण: मस्तिष्क का स्थान, जो घर में खाली और पवित्र रखा जाता है।
- नैऋत्य कोण: जांघों और पैरों का स्थान, जहाँ भारी निर्माण किया जा सकता है।
- ब्रह्म स्थान: नाभि का स्थान, जिसे घर का सबसे पवित्र भाग माना जाता है।
5. वास्तु पुरुष में देवता और राक्षस
वास्तु पुरुष के शरीर पर 32 देवता और 12 राक्षस स्थित हैं।
- बाहरी सीमा पर स्थित देवता:
- 1. ईश, 2. पर्जन्य, 3. जयन्त, 4. इन्द्र, 5. सूर्य, 6. सत्य, 7. भृश, 8. आकाश, 9. वायु, 10. पूषा, 11. वितथ, 12. वृहत्क्षत, 13. यम, 14. गन्धर्व, 15. भृङ्गराज, 16. मृग, 17. पितृ, 18. दौवारिक, 19. सुग्रीव, 20. पुष्पदंत, 21. वरुण, 22. असुर, 23. शेष, 24. पापयक्ष्मा, 25. रोग, 26. अहि, 27. मुख्य, 28. भल्लाट, 29. सोम, 30. सर्प 31. अदिति, 32. दिति .
- अंदरूनी भाग के देवता:
- 1. आप, 2. सविता, 3. इन्द्रजय, 4. शेष, 5. मरीची, 6. सावित्री, 7. विवस्वान, 8. विष्णु, 9 मित्र, 10. रुद्र , 11. पृथ्वीधर, 12. आपवत्स, 13. ब्रह्मा .
इन देवताओं और राक्षसों का प्रभाव घर के ऊर्जा क्षेत्रों पर पड़ता है। सही दिशा में निर्माण करने से देवताओं की कृपा मिलती है और नकारात्मक प्रभाव कम होता है।
6. वास्तु पूजा का महत्व
भारतीय संस्कृति में वास्तु पूजा को शुभ फल देने वाला माना गया है।
- भूमि पूजन: घर या भवन निर्माण से पहले वास्तु पुरुष की पूजा अनिवार्य होती है।
- नींव खोदते समय: वास्तु देवता की पूजा से निर्माण कार्य में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं।
- गृह प्रवेश: मुख्य द्वार लगाते समय और गृह प्रवेश के दौरान वास्तु पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
7. वास्तु पुरुष और घर की ऊर्जा
वास्तु पुरुष के शरीर के हर अंग का संबंध घर के ऊर्जा क्षेत्रों से है।
- सही दिशा में निर्माण सुख-समृद्धि और शांति लाता है।
- वास्तु नियमों का पालन न करने पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है।
निष्कर्ष
वास्तु पुरुष की पूजा और वास्तु नियमों का पालन न केवल पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह घर की ऊर्जा और शांति बनाए रखने में सहायक है। वास्तु शास्त्र में यह मान्यता है कि सही दिशा और ऊर्जा संतुलन से जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सफलता आती है।
वास्तु पुरुष की पूजा करें और अपने घर को सकारात्मक ऊर्जा से भरें।