नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पितृ दोष (Pitra Dosh) को जीवन की कई कठिनाइयों का कारण माना गया है। ऐसा विश्वास है कि जब पूर्वजों की आत्माएं असंतुष्ट रह जाती हैं या उनके निधन के बाद श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कर्म ठीक से नहीं किए जाते, तब पितृ दोष उत्पन्न होता है। इस दोष के प्रभाव से व्यक्ति और उसके परिवार को जीवन में बाधाओं, दुखों और अशांति का सामना करना पड़ सकता है।
कितनी पीढ़ियों तक चलता है पितृ दोष?
धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार पितृ दोष केवल एक पीढ़ी तक सीमित नहीं रहता।
- गरुड़ पुराण के अनुसार, इसका प्रभाव सामान्यतः तीन पीढ़ियों—पिता, दादा और परदादा तक रहता है।
- लेकिन यदि दोष गहरा हो, तो यह सात पीढ़ियों तक भी असर डाल सकता है।
यानी पूर्वजों के अधूरे कर्म आने वाली संतानों को भी प्रभावित कर सकते हैं।

पितृ दोष के प्रमुख लक्षण
पंडितों और ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यदि परिवार में निम्न समस्याएं लगातार बनी रहें तो यह पितृ दोष का संकेत हो सकता है:
- संतान न होना या बार-बार संतान सुख में बाधा आना।
- विवाह में रुकावटें और वैवाहिक जीवन में अशांति।
- आर्थिक हानि या व्यवसाय में लगातार गिरावट।
- परिवार के किसी सदस्य का बार-बार बीमार रहना।
- घर-परिवार में निरंतर कलह और तनाव का वातावरण रहना।

कैसे करें निवारण?
पितृ दोष से मुक्ति पाने या इसके प्रभाव को कम करने के लिए धार्मिक ग्रंथों में कुछ उपाय बताए गए हैं—
- श्राद्ध और तर्पण का विधिवत आयोजन करना।
- पिंडदान अवश्य करना, विशेषकर पितृपक्ष में।
- अपने कर्मों को पवित्र रखना और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करना।
