कई बार आपने घर के आंगन, छत या बालकनी में कबूतरों की “गुटरगूं” की आवाज़ सुनी होगी। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इन आवाज़ों के भी अपने संकेत होते हैं? भारतीय शकुन शास्त्र में कबूतर की गतिविधियों और उसकी गुटरगूं को भविष्य की घटनाओं से जोड़ा गया है। इन ध्वनियों को केवल एक पक्षी की बातचीत न समझें यह कई बार अच्छे या बुरे संकेतों का प्रतीक बन सकती है।
गुटरगूं के समय और उसका महत्व
शकुन शास्त्र के अनुसार, कबूतर की गुटरगूं शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के संकेत दे सकती है – यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह आवाज किस समय सुनाई दे रही है:
- प्रातःकाल या पहले प्रहर में गुटरगूं सुनाई दे तो यह शुभ समाचार, धन आगमन या खुशियों का सूचक हो सकता है।
- चौथे प्रहर (शाम के समय) में गुटरगूं सुनाई देना किसी समस्या, हानि या कठिन परिस्थिति की ओर संकेत कर सकता है।

कबूतरों का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
हिंदू धर्म में कबूतरों को विशेष स्थान प्राप्त है। इन्हें देवताओं का वाहन और भगवान शिव-पार्वती के प्रतीक रूप में माना गया है।
- कामदेव की पत्नी रति का वाहन माने जाने वाले कबूतर, प्रेम और शांति के प्रतीक होते हैं।
- मां लक्ष्मी के सहयोगी होने के कारण भी इन्हें शुभता से जोड़ा गया है।
- सावन के महीने में कबूतरों का आगमन सौभाग्य और समृद्धि का संकेत माना जाता है।
कबूतरों का आगमन और घोंसले का संकेत
- घर में कबूतरों का आना शुभ माना जाता है। यह सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और शुभ अवसर का संकेत होता है।
- लेकिन घर में कबूतरों का घोंसला बनाना अशुभ माना गया है। यह दुर्भाग्य, रोग, मानसिक तनाव और धन हानि का कारण बन सकता है।

क्या करें और क्या न करें
- कबूतरों को दाना देना शुभ फलदायक होता है। इससे गुरु और बुध ग्रह प्रसन्न होते हैं और जीवन में शुभ फल प्रदान करते हैं।
- परंतु कबूतर अगर घर में घोंसला बना लें, तो उसे हटाना ही उचित होता है, क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा और दुर्भाग्य का कारण बन सकता है।
प्रकृति देती है संकेत, समझना हमारा कार्य
प्रकृति में हर जीव और उसकी गतिविधि का अर्थ होता है। कबूतरों की गुटरगूं को भी हल्के में न लें। शकुन शास्त्र के अनुसार, यह हमारे जीवन की दिशा का संकेत हो सकती है – ज़रूरत है तो बस ध्यान से सुनने और समझने की।