धर्म डेस्क। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या रूप चौदस भी कहा जाता है, अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। लेकिन इसके साथ ही यह पर्व जीवन और मृत्यु से जुड़ी गहरी आध्यात्मिक समझ को भी उजागर करता है।
इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि यमराज की विधिपूर्वक आराधना करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और जीवन में सुख, शांति और संतुलन स्थापित होता है।
यमराज पूजा का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार यमराज धर्म और न्याय के देवता हैं, जो जीवों के कर्मों के अनुसार निर्णय लेते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन उनकी पूजा करने से न केवल मृत्यु का डर कम होता है, बल्कि जीवन में मानसिक शांति, आध्यात्मिक शक्ति और समृद्धि भी आती है। इसके साथ ही यह पूजा नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा और घर में सकारात्मक ऊर्जा के संचार का माध्यम भी मानी जाती है।
आध्यात्मिक संदेश
नरक चतुर्दशी केवल अंधकार पर प्रकाश की जीत नहीं है, बल्कि यह जीवन और मृत्यु के चक्र की ओर ध्यान खींचने वाला पर्व भी है। यमराज की पूजा जीवन को सुरक्षित, संतुलित और शांति से भरपूर बनाने का संदेश देती है।

यम दीपक बनाने की परंपरा
इस दिन खासतौर पर गेहूं के आटे से यम दीपक बनाया जाता है। इसे बनाने की विधि इस प्रकार है:
- गेहूं के आटे से दीपक तैयार करें।
- दीपक में चार बातियाँ रखें।
- इसमें सरसों का तेल भरें।
- दीपक के चारों ओर गंगाजल छिड़कें।
- इसे घर के मुख्य द्वार पर, दक्षिण दिशा की ओर रखें।
- दीपक के नीचे कुछ अनाज के दाने रखें।
इस परंपरा का उद्देश्य घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना और अकाल मृत्यु जैसी बाधाओं को दूर करना है। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा भी मिलती है और घर में सुख, समृद्धि और वैभव बना रहता है।