ज्येष्ठ मास 2025: हिंदू पंचांग में ज्येष्ठ मास का विशेष महत्व है। यह वर्ष का तीसरा माह होता है और धार्मिक, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इस वर्ष ज्येष्ठ माह का आरंभ 13 मई 2025 से हुआ है और यह 11 जून 2025 तक चलेगा। इस मास में व्रत, तप, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है।
क्यों पड़ा ज्येष्ठ मास नाम?
आपके मन में सवाल आता होगा कि जब यह साल का तीसरा महीना है, तो इसका नाम “ज्येष्ठ” क्यों पड़ा? दरअसल, संस्कृत में ‘ज्येष्ठ’ का अर्थ होता है बड़ा। इस महीने में दिन अन्य महीनों की तुलना में सबसे लंबे होते हैं, इसलिए इसे ‘ज्येष्ठ’ कहा जाता है। इसके अलावा, इस माह के अंत में पूर्णिमा के दिन ‘ज्येष्ठा नक्षत्र’ भी आता है, जिससे इसका नाम और भी सार्थक हो जाता है।
ज्येष्ठ मास में क्या करना चाहिए?
धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार, इस पवित्र माह में कुछ विशेष कार्यों का पालन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है:
- एक समय भोजन करने की परंपरा है, जिसका वर्णन महाभारत के अनुशासन पर्व में भी किया गया है।
- सूर्योदय से पूर्व स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देना और उनकी आराधना करना लाभकारी माना गया है।
- जल का दान, विशेष रूप से ठंडे जल से भरे घड़े, सुराही या मटके का दान करना विशेष फलदायी होता है।
- तिल का दान इस माह में अत्यंत शुभ माना गया है।
- पशु-पक्षियों की सेवा तथा पेड़-पौधों को जल देना पुण्यकारी कार्य हैं।
- चूंकि इस माह के स्वामी मंगल ग्रह हैं, अतः हनुमान जी की पूजा करना विशेष फल प्रदान करता है।
ज्येष्ठ माह में क्या नहीं करना चाहिए?
शास्त्रों में इस महीने से जुड़े कुछ निषेध भी बताए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है:
- जल का अपव्यय नहीं करना चाहिए, इससे वरुण दोष लग सकता है।
- बैंगन, लहसुन और राई का सेवन वर्जित माना गया है।
- मसालेदार व गरिष्ठ भोजन से परहेज करना चाहिए, क्योंकि इस मौसम में वात और गर्मी का प्रभाव बढ़ता है।
- बाल कटवाना और नाखून काटना भी वर्जित बताया गया है।
- मांसाहार और मदिरा का सेवन इस माह में पूर्णतः निषिद्ध है।
- दिन में सोने की मनाही है, हालांकि स्वास्थ्य कारणों से एक मुहूर्त तक विश्राम किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
ज्येष्ठ माह केवल तप और व्रत का ही नहीं, प्रकृति और सेवा भाव का भी महीना है। यह आत्मसंयम, परोपकार और तपस्या के माध्यम से जीवन को संतुलित और सात्विक बनाने का अवसर देता है। यदि इस माह के नियमों और परंपराओं का सही तरह पालन किया जाए, तो न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।