Holika Dahan 2025: होलिका दहन और प्रहलाद की कहानी, सत्य और भक्ति की जीत
होली का त्योहार सिर्फ रंगों और उल्लास का नहीं, बल्कि सत्य, धर्म और भक्ति की विजय का प्रतीक भी है। होलिका दहन, जिसे छोटी होली भी कहा जाता है, इस पर्व की शुरुआत का संकेत देता है। इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक रूप से प्रदर्शन किया जाता है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन की कहानी भक्त प्रहलाद, उनके पिता राक्षस राज हिरण्यकश्यप और उनकी बुआ होलिका से जुड़ी हुई है। हिरण्यकश्यप को अपने शक्ति और अमरत्व का अहंकार था। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त था।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन हर बार वह भगवान विष्णु की कृपा से बच जाता। अंत में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठे। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी, लेकिन भगवान की कृपा से यह वरदान निष्फल हो गया। आग में होलिका जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रहलाद सुरक्षित बच गए।
संदेश और महत्व
- सत्य की जीत: यह कथा यह सिखाती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य की ही जीत होती है।
- भक्ति और विश्वास: प्रहलाद की भक्ति और भगवान पर अटूट विश्वास ने उन्हें हर संकट से बचाया।
- अहंकार का नाश: हिरण्यकश्यप का घमंड अंततः भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार द्वारा नष्ट किया गया।
होलिका दहन की परंपराएं
- होलिका दहन के दिन लकड़ियों और उपलों से चिता बनाई जाती है।
- परिवारजन अग्नि में गेंहू की बालियां, नारियल और अन्य सामग्री डालते हैं।
- यह अनुष्ठान बुरी शक्तियों और नकारात्मकता को जलाकर समाप्त करने का प्रतीक होता है।
निष्कर्ष
होली सिर्फ एक रंगों का त्योहार नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक संदेश भी देता है कि सच्चाई और भक्ति की हमेशा विजय होती है। होलिका दहन हमें यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, सच्चा विश्वास और धर्म हमें सुरक्षित रखते हैं।
(होलिका दहन 2025 की तिथि: 13 मार्च, गुरुवार)