नई दिल्ली : हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों को बेहद पवित्र और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। इनमें न केवल विधियों और मंत्रों का महत्व होता है, बल्कि बैठने की दिशा और स्थान का भी विशेष महत्व होता है — खासतौर पर पति-पत्नी के संबंध में। शास्त्रों के अनुसार, यदि ये नियमों का पालन किया जाए तो पूजा का संपूर्ण और सकारात्मक फल प्राप्त होता है।
क्यों होता है बैठने की दिशा का महत्व?
धार्मिक ग्रंथों और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब पति-पत्नी एक साथ पूजा में बैठते हैं तो यह उनका धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक सामंजस्य दर्शाता है। लेकिन सवाल उठता है पत्नी को पति के किस ओर बैठना चाहिए?
धार्मिक कार्यों में पत्नी को दाहिनी ओर बैठाना क्यों शुभ माना गया है?
शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, नामकरण, अन्नप्राशन जैसे शुभ कार्यों में पत्नी को हमेशा पति के दाहिनी (दाएं) ओर बैठना चाहिए। इसके पीछे कई धार्मिक और प्रतीकात्मक कारण हैं:
- दाहिना भाग भक्ति, कर्म और कर्तव्य का प्रतीक होता है।
- यह इस बात का संकेत देता है कि पति-पत्नी मिलकर अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
- पत्नी को शक्ति का स्वरूप माना गया है, और शक्ति का साथ दाहिनी ओर शुभ प्रभाव देता है।
- यह स्थिति भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की याद दिलाती है, जिसमें एक ही शरीर में नर और नारी का संतुलन है — पूर्णता और एकता का प्रतीक।

सांसारिक कार्यों में क्यों होती है पत्नी बाईं ओर?
जहां पूजा-पाठ जैसे कर्मकांडों में दाहिनी ओर बैठना उचित है, वहीं गृहस्थ जीवन और सामाजिक कार्यों में पत्नी का पति की बाईं ओर बैठना शुभ माना गया है:
- शास्त्रों में पत्नी को ‘वामांगी’ कहा गया है — यानी बाएं अंग की स्वामिनी।
- मान्यता है कि स्त्री की उत्पत्ति भगवान शिव के बाएं अंग से हुई थी, और माता पार्वती भी शिवजी के बाईं ओर विराजमान रहती हैं।
- बाईं ओर प्रेम, ममता, करुणा और गृहस्थी के भाव जुड़े होते हैं।
- सिंदूरदान, भोजन, आशीर्वाद, चरण स्पर्श, विवाह की रस्में और सोते समय पत्नी का पति की बाईं ओर होना शुभ माना जाता है।
पूजा में साथ बैठना क्यों जरूरी है?
हिंदू मान्यताओं में कहा गया है कि पति को किसी भी पूजा में अकेले नहीं बैठना चाहिए, यदि पत्नी जीवित हो तो। ऐसा करने से पूजा का फल अधूरा माना जाता है। पत्नी के साथ बैठने से धार्मिक ऊर्जा और शक्ति संतुलित होती है, और अनुष्ठान सफल होता है।