माँ बम्लेश्वरी मंदिर, डोंगरगढ़, छत्तीसगढ़ का एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। यह मंदिर राजनांदगांव जिले में स्थित है और 1,600 फीट ऊँचाई पर स्थित है, जिसे “बड़ी बम्लेश्वरी” के नाम से जाना जाता है। इसके नीचे स्थित मंदिर को “छोटी बम्लेश्वरी” कहा जाता है। डोंगरगढ़ का प्राचीन नाम “कामावती नगरी” था।
ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि राजा कामसेन ने माँ बगलामुखी की तपस्या की थी, जिसके बाद माँ ने उन्हें बम्लेश्वरी रूप में दर्शन दिए। भक्तों की कठिनाई को देखते हुए, माँ ने पहाड़ी के नीचे भी अपने स्वरूप—छोटी बम्लेश्वरी और मंझली रणचंडी—में प्रकट होकर भक्तों को दर्शन का अवसर प्रदान किया।
धार्मिक महत्व
माँ बम्लेश्वरी को माँ बगलामुखी का अवतार माना जाता है, जो माँ दुर्गा के दस महाविद्याओं में से एक हैं। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएँ पूरी होती हैं, खासकर संतान प्राप्ति और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति के लिए यहाँ मन्नतें माँगी जाती हैं।
नवरात्रि पर्व और ज्योति कलश
चैत्र और क्वार नवरात्रि के दौरान विशेष आयोजन होते हैं। भक्त ज्योति कलश प्रज्वलित करते हैं और दूर-दूर से मंदिर दर्शन के लिए आते हैं। इस दौरान मंदिर परिसर में मेले का आयोजन होता है, जिसमें झूले, खानपान और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
मंदिर तक पहुँच
मंदिर तक पहुँचने के लिए 1,100 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं, लेकिन भक्तों की सुविधा के लिए रोपवे (उड़नखटोला) की व्यवस्था भी है। डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग आधा किलोमीटर है, जिसे पैदल या ऑटो-रिक्शा से तय किया जा सकता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व
डोंगरगढ़ का इतिहास उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से भी जुड़ा हुआ है, जो माँ बगलामुखी के उपासक थे। यह क्षेत्र धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग सद्भाव से रहते हैं।
अगर आप माँ बम्लेश्वरी मंदिर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो नवरात्रि का समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस दौरान मंदिर के दर्शन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर आपकी यात्रा और भी यादगार हो सकती है।