शंख का हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान है और इसे भगवान विष्णु से जोड़ा जाता है। शंख का उपयोग पूजा में एक पवित्र वस्तु के रूप में किया जाता है, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और वातावरण को शुद्ध करता है। इसके साथ ही, यह मौलिक ध्वनि ‘ओम’ का प्रतीक भी माना जाता है। शंख का आकार ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है, और इसे आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि का शक्तिशाली प्रतीक माना जाता है।
वास्तु शास्त्र और शंख का स्थान
वास्तु शास्त्र के अनुसार, शंख का सही स्थान और उसका रखरखाव महत्वपूर्ण होता है। पूजा के स्थान पर एक ही शंख होना शुभ माना जाता है, और इसे पूर्वोत्तर दिशा में रखना चाहिए। यह दिशा दैवीय ऊर्जा से जुड़ी होती है, जिससे सकारात्मक तरंगों का संचार होता है। पूजा के समय शंखनाद करने से आसपास का वातावरण भी शुद्ध होता है।
घर में एक साथ दो शंख रखने से नकारात्मक प्रभाव-वास्तु शास्त्र के अनुसार, एक ही स्थान पर दो शंख नहीं रखने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जब दो शंख एक साथ रखे जाते हैं, तो उनकी ऊर्जाएं आपस में टकराने लगती हैं, जिससे नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है। इससे घर में कलह, भ्रम और वित्तीय अस्थिरता जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसीलिए, एक ही स्थान पर दो शंख रखना अव्यावहारिक माना जाता है।
जानें इससे जुड़ी मान्यताएं
क्या अलग जगहों पर रख सकते हैं दो शंख?
यदि आप दो शंख रख रहे हैं—एक पूजा के लिए और दूसरा बजाने के लिए—तो ध्यान रखें कि इन्हें अलग-अलग स्थानों पर रखना चाहिए। पूजा के लिए उपयोग किया जाने वाला शंख कभी नहीं बजाना चाहिए, क्योंकि इसे होंठों से स्पर्श करने से पूजा का प्रभाव कम हो सकता है। दक्षिणावर्ती शंख आमतौर पर पूजा के लिए उपयोग किया जाता है, और इसे उचित स्थान पर रखा जाना चाहिए।