Badrinath Dham : बद्रीनाथ धाम, जिसे धरती का बैकुंठ कहा जाता है, हिंदू धर्म में आस्था और मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। उत्तराखंड की पवित्र पर्वत श्रृंखलाओं और अलकनंदा नदी के किनारे स्थित यह धाम, चार धाम यात्रा का एक प्रमुख पड़ाव है। मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं निवास करते हैं, और जो भी श्रद्धालु यहां दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
चार धाम यात्रा की शुरुआत, जल्द खुलेंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट
चार धाम यात्रा की शुरुआत हो चुकी है और भक्तों में विशेष उत्साह देखने को मिल रहा है। 4 मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे, जबकि यमुनोत्री, गंगोत्री और केदारनाथ के कपाट पहले ही श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। बद्रीनाथ धाम की यात्रा आध्यात्मिक शांति, प्राकृतिक सौंदर्य और मोक्ष की आशा से परिपूर्ण होती है।

बद्रीनाथ को ‘धरती का बैकुंठ’ क्यों कहते हैं
बद्रीनाथ धाम को धरती का बैकुंठ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां भगवान विष्णु का वास माना जाता है। धर्मग्रंथों में वर्णन है कि जो भी व्यक्ति यहां सच्चे मन से भगवान बद्रीनारायण के दर्शन करता है, उसे जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है। यह स्थान मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है, इसलिए इसे बैकुंठ का रूप कहा गया है।
बद्रीनाथ मंदिर में विराजमान हैं भगवान विष्णु की स्वयंभू मूर्ति
बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की स्वयंभू मूर्ति विराजमान है, जिसे आदि शंकराचार्य ने नारद कुंड से प्राप्त कर मंदिर में स्थापित किया था। इस मूर्ति के साथ कुबेर देव, माता लक्ष्मी, और नारायण की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। यह मूर्ति भगवान विष्णु की आठ स्वयं प्रकट हुई दिव्य मूर्तियों में से एक मानी जाती है।

बद्रीनाथ धाम दर्शन की प्रक्रिया
अगर आप बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए जा रहे हैं, तो यहां बताई गई प्रक्रिया से आप अपनी यात्रा को पवित्र और व्यवस्थित बना सकते हैं:
- सुबह उठकर तप्तकुंड (गर्म जल का कुंड) में स्नान करें।
- स्नान के बाद स्वच्छ नए वस्त्र धारण करें।
- पहले आदि ईश्वर महादेव मंदिर के दर्शन करें।
- फिर मंदिर परिसर में मिलने वाला प्रसाद लेकर भगवान विष्णु के दर्शन करें।
बद्रीनाथ मंदिर हिमालय की गोद में, अलकनंदा नदी के किनारे बसा है, और यहाँ की शांति और भक्ति की अनुभूति शब्दों से परे है।
आस्था, अध्यात्म और प्रकृति का संगम
बद्रीनाथ धाम केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह हिंदू संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवंत प्रतीक है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं, ताकि वे भगवान विष्णु के दर्शन कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर सकें। इस यात्रा में प्रकृति, भक्ति और आत्मिक शांति—तीनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
