आदि शंकराचार्य जयन्ती : हिंदू धर्म में आदि शंकराचार्य का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण और सर्वोच्च माना जाता है। उनका जन्म 788 ई. में केरल के कालड़ी गांव में हुआ था, जो नंबूदरी ब्राह्मण परिवार से थे। उन्हें हिंदू धर्म के महान प्रतिनिधियों में एक माना जाता है और उन्होंने सनातन धर्म को मजबूती प्रदान करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनकी जयंती वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है, और इस वर्ष भी हम उनका योगदान याद करते हुए यह पर्व मनाएंगे।
आदि शंकराचार्य की परंपरा की शुरुआत
आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के लिए भारत के चारों प्रमुख दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। इन मठों को शंकराचार्य परंपरा के तहत संचालित किया गया और प्रत्येक मठ का नेतृत्व प्रमुख शंकराचार्य द्वारा किया जाता है। यह परंपरा आठवीं शताब्दी के आस-पास प्रारंभ हुई।

चार शंकराचार्य मठ
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ये चार मठ सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। ये चार मठ भारत के विभिन्न कोनों में स्थित हैं:
- ज्योतिर्मठ (उत्तर मठ) – जोशीमठ, उत्तराखंड में स्थित है।
- गोवर्धन मठ (पूर्व मठ) – ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में स्थित है।
- शृंगेरी शारदा पीठ (दक्षिण मठ) – कर्नाटका के चिकमंगलूर में स्थित है।
- द्वारका पीठ (पश्चिम मठ) – गुजरात के द्वारकाधाम में स्थित है।
इन मठों की स्थापना के साथ-साथ शंकराचार्य ने इन मठों में चार प्रमुख शिष्यों को नियुक्त किया, जो उनके विचारों और परंपराओं को फैलाने में सहायक बने।

शंकराचार्य बनने की प्रक्रिया
शंकराचार्य बनने के लिए व्यक्ति को सन्यासी होना आवश्यक होता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को गृहस्थ जीवन त्यागना पड़ता है और उसे मुंडन, रुद्राक्ष धारण करना, तथा तन और मन से शुद्ध होना चाहिए। इसके अलावा, शंकराचार्य बनने के लिए चारों वेदों और छह वेदांगों का ज्ञान होना चाहिए। शंकराचार्य बनने की प्रक्रिया में प्रतिष्ठित संतों और आचार्य महामंडलेश्वरों की सहमति और काशी विद्वत परिषद की मुहर जरूरी होती है।
आदि शंकराचार्य का योगदान
आदि शंकराचार्य ने न केवल धार्मिक परंपराओं का पुनर्निर्माण किया बल्कि भारतीय समाज में वेदों और तात्त्विक ज्ञान का प्रसार भी किया। उनके द्वारा स्थापित चार मठों ने सनातन धर्म को पूरे देश में फैलाया और उनकी शिक्षा आज भी लाखों लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

इस प्रकार, आदि शंकराचार्य की जयंती न केवल उनके योगदान का उत्सव है, बल्कि यह सनातन धर्म की शक्ति और परंपराओं को भी स्मरण करने का अवसर है।