भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 132 कि.मी. दूर कबीरधाम ज़िले के एक छोटे से गांव में एक मंदिर है जिसे “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” माना जाता है ? अलंकृत मूर्तियों वाला भोरमदेव मंदिर 11वीं शताब्दी का माना जाता है जो खजुराहो और उड़ीसा के कोर्णाक सूर्य मंदिर से काफ़ी मिलता जुलता है। भोरमदेव मंदिर परिसर में ईंटों से बने मंदिरों के ख़ंडहरों के अलावा और भी प्राचीन मंदिर हैं। ये मंदिर और इसके आसपास का ऐतिहासिक परिदृश्य भक्तो को बहुत आकर्षित करता है
भोरमदेव मंदिर मध्य भारत में सतपुड़ा घाटी के मैकल पर्वत श्रंखला के जंगलों से घिरा हुआ है कबीरधाम ज़िले में कवर्धा नामक शहर से 18 कि.मी. के फ़ासले पर स्थित है ये मंदिर पहले भगवान विष्णु को समर्पित था। कई पुराने दस्तावेज़ों और साहित्यिक स्रोतों में इसका विष्णु मंदिर नाम से ही उल्लेख मिलता है। लेकिन अब इसे शिव मंदिर के रुप में पूजा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है मंदिर के तीन प्रवेश द्वारों के मध्य स्थित है। मंदिर में योगी की मुद्रा वाली मूर्ति के आसन पर संस्कृत भाषा में चार अभिलेख अंकित हैं
इस मंदिर का निर्माण गोपाल देव राजा के संरक्षण में, 11वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। अभिलेख में संवत 840 अंकित है जिसका मतलब हुआ कि मंदिर का निर्माण शायद सन 1089 के आसपास हुआ होगा। कुछ विद्वान गोपाल देव को नाग अथवा नागवंशी राजा मानते हैं कवर्धा और इसके आसपास के क्षेत्रों पर नागवंश के राजाओं का शासन था जिन्होंने 9वीं शताब्दी से लेकर 500 सालों तक राज किया। इनके पहले छत्तीसगढ़ के कलचुरि और हैहय राजवंश का शासन था। भगवान शिव के रुप भोरम देव को गोंड जनजाति के लोग अपना कुल देवता मानते थे और इस मंदिर में उनकी पूजा किया करते थे।
मंदिर की अद्भुत वास्तुकला नागर शैली की है। ये मंदिर पांच फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है जिस पर कई हिंदू देवी-दोवताओं की मूर्तिया बनी हुई हैं। मंदिर का प्लान भारत में मध्यकाल के ज़्यादातर मंदिरों की तरह ही है। मंदिर में एक चौकोर मंडप है जहां, गलियारे से होते हुए गर्भगृह पहुंचा जाता है। मंदिर का मंडप 16 स्तंभों पर खड़ा है। प्रत्येक स्तंभ पर सुंदर नक़्क़ाशी है।
मंदिर की, बाहरी पत्थरों की दीवारों पर उत्तेजक मूर्तियां बनी हुई हैं और इसीलिये इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। इसकी मूर्तिकला खजुराहो और कोर्णाक मंदिर की मूर्तिकला से ख़ूब मिलती जुलती है। यहां कई हिंदू देवी-देवताओं, नृतकों और संगीतकारों की मूर्तियां हैं। मंदिर की चौखट पर भी बहुत सुंदर सजावट है।
भोरमदेव मंदिर परिसर में एक छोटा सा संग्रहालय है जिसमें इस क्षेत्र में खुदाई में मिली कलाकृतियां, मूर्तियों तथा स्तंभों के अवशेष रखे हुए हैं। हर साल फ़रवरी के महीने में मंदिर परिसर में उत्सव का आयोजन होता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। भोरमदेव मंदिर में छत्तीसगढ़ ही नहीं पुरे देश से लोग दर्शन हेतु आते है भोरमदेव मंदिर प्रदेश ही नहीं पुरे देश के लिए आस्था का केंद्र बना हुवा है
भोरमदेव मंदिर कवर्धा छत्तीसगढ़
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