रायपुर। सिंधी समाज के लिए यह अवसर गर्व, भक्ति और आस्था से परिपूर्ण रहा जब पूज्य सिंधी पंचायत राम के तत्वावधान में भगवान झूलेलाल जी की 56 फीट ऊँची भव्य मूर्ति स्थापना हेतु एक दिव्य और ऐतिहासिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि समाज के सांस्कृतिक जागरण का भी प्रतीक बना।
इस आयोजन की शुरुआत चक्कर भाटा स्थित लाल साईं जी के आशीर्वाद से हुई, जहाँ से शोभायात्रा प्रारंभ होकर राजेन्द्र नगर से होते हुए फुटपार्क चौपाटी तक पहुँची। वहाँ फुटपार्क संचालकों द्वारा कलश यात्रा एवं लाल साईं जी का भव्य स्वागत किया गया। पूरे मार्ग में श्रद्धालुओं की भीड़, भक्ति भजन, ध्वनि और उत्साह देखने लायक था।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत 23, 24 एवं 25 अगस्त को झूलेलाल मंदिर प्रांगण में तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन संपन्न हुआ।
23 अगस्त को शाम 6:00 बजे भाव कलश यात्रा का शुभारंभ हुआ, जिसमें समाज की महिलाओं, युवाओं और वरिष्ठजनों ने परंपरागत पोशाकों में भाग लिया।
24 अगस्त को शाम 7:00 बजे श्री लाल साईं जी के श्रीमुख से भगवान झूलेलाल जी की कथा का वाचन हुआ। कथा के पश्चात भक्ति-भाव से ओतप्रोत वातावरण में भोजन प्रसादी वितरित की गई।
25 अगस्त को शाम 7:00 बजे पुनः लाल साईं जी द्वारा झूलेलाल कथा का समापन हुआ और तत्पश्चात भव्य भोजन प्रसादी की सेवा की गई।

25 अगस्त को ही 251 बहराणा साहेब की शोभायात्रा 56 फीट झूलेलाल मूर्ति स्थल से प्रारंभ होकर केनान रोड, अमलीडीह पियूष कॉलोनी, गेलेक्सी मारुति रेजीडेंसी होते हुए अमलीडीह तालाब में सम्पन्न हुई। यह यात्रा श्रद्धा, भक्ति और समाज की एकता का प्रतीक बनी। यात्रा के समापन के पश्चात भोजन प्रसादी का भव्य आयोजन किया गया, जिसकी सेवा सेवा पथ परिवार सहित कई संस्थाओं और समाजसेवकों द्वारा समर्पण भाव से की गई।

इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य यह रहा कि सिंधी समाज की युवा पीढ़ी को अपने आराध्य देव भगवान झूलेलाल जी के जीवन चरित्र, उनके आदर्शों एवं हिंदुत्व की रक्षा में उनके योगदान की जानकारी मिल सके।
पंचायत के अनुसार यह आज के समय की एक आवश्यकता है, क्योंकि बहुत से लोग अब यह तक नहीं जानते कि भगवान झूलेलाल का जन्म कहाँ हुआ था, उनके माता-पिता कौन थे, चालिया साहिब क्यों मनाया जाता है, और उन्होंने समाज के लिए क्या संघर्ष किए। इन सभी विषयों की विस्तृत जानकारी इस कथा में दी गई, जो हर श्रोता के लिए प्रेरणादायी सिद्ध हुई।

पूरे आयोजन में सिंधी समाज ही नहीं, बल्कि रायपुर और आसपास के क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। भक्ति, भजन, शोभायात्रा और कथा के साथ-साथ जयकारों से पूरा वातावरण झूलेलालमय हो गया। कार्यक्रम की प्रत्येक कड़ी में श्रद्धालुओं की आस्था और समर्पण साफ झलकता रहा।
यह आयोजन न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि सिंधी समाज की एकता, संस्कृति और परंपरा को जीवंत रखने की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम भी सिद्ध हुआ।