“माटी बोले”
माटी बोले, थोरकुन सुन ले बेटा, मेरे सीना म लहू नई, पसीना बहता। हर बूंद म मेहनत के गीत बसे हे, हर कण म सपना के बीज हरे हे।
मैं वो धरती हंव जिहां हल चले, जां गोड़ के निशान म इतिहास जले। जां बैला संग किसान गाए राग, ओही राग म बसथे गांव के भाग।
मैं जंगल के सन्नाटा म बसी आवाज हंव, मैं आदिवासी के गीत, उनका राज हंव। मैं वो दीप हंव जऊन अंधियार ल फोड़े, मैं वो छांही हंव जऊन थके मन ल ओड़े।
मेरे छाती ऊपर चलत हवै रस्ता, मं चुपचाप सहे बरसों के किस्सा। पर जब जग जागे, तब मोर जयकार होथे, “जय जोहार” कहिके, मोर अभिव्यक्त प्यार होथे।
माटी बोले, सुन बेटा, मंय भूले नई, जऊन मंय जियत हंव, तैं ओला सींच ले भाई। धरती मं पसीना दे, गगन मं सपना रख, तें चलव एक ठन नई छत्तीसगढ़ रच।