नई दिल्ली। भारत को नया उपराष्ट्रपति मिल गया है। महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन देश के 17वें उपराष्ट्रपति चुने गए हैं। वे अब जगदीप धनखड़ की जगह लेंगे। राधाकृष्णन न केवल अनुभवी प्रशासक हैं बल्कि उन नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने दक्षिण भारत में भाजपा की नींव मजबूत की।
शुरुआती जीवन और संघ से जुड़ाव
सीपी राधाकृष्णन का जन्म 1957 में तमिलनाडु के तिरुप्पुर जिले में हुआ। बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक करने के बाद उन्होंने महज 16 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़कर सामाजिक जीवन की शुरुआत की। साल 1974 में वे जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने।
भाजपा में एंट्री और संसदीय करियर
तमिलनाडु में भाजपा को जनाधार देने की चुनौती के बीच 1996 में वे राज्य भाजपा के सचिव बने। 1998 में उन्होंने कोयंबटूर से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में प्रवेश किया और 1999 में दोबारा जीत दर्ज की। अपने संसदीय कार्यकाल में उन्होंने कपड़ा उद्योग समिति का नेतृत्व किया और शेयर बाजार घोटाले की जांच समिति के सदस्य भी रहे।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भूमिका
2004 में वे भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने गए। वे ताइवान जाने वाले पहले भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल रहे। 2004-2007 के बीच उन्होंने तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के रूप में 93 दिनों में 19,000 किलोमीटर लंबी रथ यात्रा निकालकर पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का प्रयास किया। इस यात्रा में उन्होंने नदी जोड़ो योजना, समान नागरिक संहिता, आतंकवाद विरोध और नशामुक्ति जैसे मुद्दे उठाए।
संगठन और प्रशासनिक अनुभव
इसके बाद उन्हें कोच्चि स्थित कॉयर बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। उनके कार्यकाल में भारत का कॉयर निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा। 2020 से 2022 तक वे केरल भाजपा के प्रभारी रहे और संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया।

राज्यपाल के रूप में भूमिका
फरवरी 2023 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। सिर्फ चार महीनों में ही उन्होंने राज्य के सभी 24 जिलों का दौरा किया। इसके बाद वे महाराष्ट्र के राज्यपाल बने, जहां उन्होंने शिक्षा, ग्रामीण विकास और प्रशासनिक पारदर्शिता पर जोर दिया।
अब उपराष्ट्रपति की नई जिम्मेदारी
अपने लंबे राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव के बाद अब सीपी राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति के रूप में संसद की कार्यवाही का संचालन करेंगे। उनका चुनाव दक्षिण भारत से भाजपा के बढ़ते प्रभाव और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी स्वीकृति का बड़ा संकेत माना जा रहा है।