राहुल गांधी ने एक बार फिर भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियों पर सवाल उठाते हुए विवाद खड़ा कर दिया है। हाल के महीनों में उन्होंने कई बार भारतीय बलों की ईमानदारी और नीयत पर सार्वजनिक मंचों से बयान दिए हैं, जिससे जवानों का मनोबल प्रभावित हो सकता है। ऐसे बयान देश की एकता को कमजोर करने का काम कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब देश सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा हो, तब राजनीतिक दलों को अपने सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ाना चाहिए, न कि उस पर संदेह करना चाहिए। इससे पहले बालाकोट एयरस्ट्राइक और उरी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी राहुल गांधी ने वीडियो सबूत मांगकर सेना के बलिदान पर सवाल उठाए थे।
हाल में भोपाल में एक पार्टी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर पाकिस्तान के दबाव में झुकने का आरोप लगाया। इसके बाद कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर इसे और उभारा। वैश्विक दृष्टिकोण से देखें तो युद्धरत देशों में सभी राजनीतिक दल एकजुटता दिखाते हैं, लेकिन भारत में विपक्षी नेताओं के बयानों से राष्ट्रीय भावना को ठेस पहुंच रही है।
देशभक्ति का मतलब है सेना और सुरक्षा बलों पर पूरा भरोसा रखना। राहुल गांधी के बयानों से सेना के मनोबल पर असर पड़ता है और दुश्मनों के हौसले बुलंद होते हैं। अब समय है जब सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखें।