हैदराबाद/श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (NASA) की ऐतिहासिक साझेदारी ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। दोनों एजेंसियों ने मिलकर पृथ्वी की निगरानी और प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी के लिए तैयार किया गया NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) सैटेलाइट सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर दिया है। इसे आंध्र प्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा से ISRO के GSLV-F16 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया।

पृथ्वी की निगरानी में गेमचेंजर साबित होगा NISAR
यह सैटेलाइट पृथ्वी से 743 किलोमीटर ऊपर सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा में परिक्रमा करेगा और हर दिन 14 बार धरती का चक्कर लगाएगा। खास बात यह है कि NISAR सैटेलाइट हर 12 दिन में पूरी धरती की सतह और बर्फीले क्षेत्रों को दो बार स्कैन करेगा। इसका मकसद भूकंप, भूस्खलन, ज्वालामुखी, सूनामी, बाढ़, और जलवायु परिवर्तन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की समय रहते जानकारी देना है।
ISRO चेयरमैन ने बताया- पूरी दुनिया को होगा फायदा
ISRO चेयरमैन वी. नारायणन ने इस ऐतिहासिक लॉन्च की पुष्टि करते हुए कहा कि यह मिशन भारत और अमेरिका के बीच सहयोग की नई ऊंचाई को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि NISAR का कुल वजन 2,392 किलोग्राम है और इसे बेहद सटीक तकनीक से तैयार किया गया है। उन्होंने NASA की Jet Propulsion Laboratory (JPL) और ISRO के वैज्ञानिकों का विशेष रूप से आभार जताया।
नारायणन ने कहा कि “NISAR मिशन का डेटा पूरी दुनिया के लिए उपयोगी होगा और यह केवल भारत-अमेरिका की सीमा तक सीमित नहीं रहेगा। इससे वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और आपदाओं से निपटने की क्षमता बेहतर होगी।”

पहली बार दो रडार सिस्टम वाला सैटेलाइट
NISAR दुनिया का पहला ऐसा सैटेलाइट है जिसमें दो अलग-अलग सिंथेटिक अपर्चर रडार लगे हैं—NASA का L-बैंड और ISRO का S-बैंड। ये दोनों मिलकर पृथ्वी की सतह पर सिर्फ 1 सेंटीमीटर की हलचल तक को पकड़ने में सक्षम हैं। इसमें नासा द्वारा निर्मित 12 मीटर व्यास का बड़ा एंटीना लगाया गया है, जो SweepSAR तकनीक के माध्यम से 242 किमी चौड़ी सतह को एकसाथ स्कैन कर सकता है।

क्या है NISAR की खासियत?
विवरण | जानकारी |
---|---|
मिशन का नाम | NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) |
एजेंसियाँ | ISRO (भारत) और NASA (अमेरिका) |
कुल वजन | 2,392 किलोग्राम |
ऑर्बिट | सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा (743 किमी ऊँचाई) |
परिक्रमा दर | प्रतिदिन 14 बार पृथ्वी की परिक्रमा |
स्कैन आवृत्ति | हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की दो बार स्कैनिंग |
रडार सिस्टम | L-बैंड (NASA) और S-बैंड (ISRO) |
एंटीना आकार | 12 मीटर व्यास |
डेटा उत्पादन | प्रतिदिन लगभग 80 टेराबाइट |
मुख्य उद्देश्य | आपदा प्रबंधन, कृषि, वनस्पति, ग्लेशियर, जलवायु परिवर्तन पर निगरानी |
डेटा नीति | ओपन एक्सेस, 24–48 घंटे में उपलब्ध |

भारत-अमेरिका साझेदारी की नई ऊंचाई
NISAR सैटेलाइट भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती वैज्ञानिक साझेदारी का प्रतीक है। हाल ही में Axiom Mission 4 के तहत भारत के एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला को NASA और यूरोपीय देशों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भेजा गया था।