नई दिल्ली। आतंकवाद के खिलाफ भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। खासकर पाकिस्तान को हमले की जानकारी दिए जाने के मुद्दे पर विपक्ष हमलावर हो गया है। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान पर सवाल उठाए हैं। इसी मुद्दे पर सोमवार को संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति की बैठक हुई, जिसमें विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्थिति स्पष्ट की।
विदेश सचिव ने दी जानकारी: “हमले के बाद दी गई सूचना”
बैठक में विदेश सचिव ने बताया कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पहले दिन 9 आतंकी ठिकानों पर हमला किया। इसके बाद ही पाकिस्तान को सूचित किया गया कि ये कार्रवाई आतंकी अड्डों को निशाना बनाकर की गई है। उन्होंने साफ किया कि आगे की सैन्य कार्रवाई को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई। साथ ही विदेश मंत्री का बयान “आउट ऑफ कॉन्टेक्स्ट” यानी संदर्भ से हटकर पेश किया गया है।
“संघर्ष पारंपरिक था, परमाणु हमले की आशंका नहीं थी”
विदेश सचिव ने समिति को आश्वस्त किया कि यह संघर्ष पारंपरिक था और पाकिस्तान की ओर से परमाणु हथियार के इस्तेमाल को लेकर कोई संकेत नहीं मिला। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने सैन्य कार्रवाई पाकिस्तान के अनुरोध पर नहीं रोकी, बल्कि हमारी भूमिका पूरी तरह से स्पष्ट और एकतरफा रही।

ट्रंप की भूमिका पर विदेश सचिव का जवाब
डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर विक्रम मिसरी ने कहा, “मुझे नहीं पता, उन्होंने मुझसे कोई अनुमति नहीं ली, इतना तो तय है।” इस बयान ने समिति के सदस्यों के बीच हल्की मुस्कान जरूर ला दी।
साइबर हमलों और ट्रोलिंग पर समिति ने की निंदा
बैठक में विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनके परिवार के खिलाफ साइबर हमलों और ट्रोलिंग की भी निंदा की गई। समिति के सदस्यों ने विदेश सचिव की भूमिका की जमकर सराहना की और संकट के समय उनके नेतृत्व की तारीफ की।
बैठक में मौजूद रहे कई वरिष्ठ सांसद
बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने की। इसमें सागरिका घोष, अभिषेक बनर्जी, असदुद्दीन ओवैसी, रविशंकर प्रसाद, दीपेंद्र हुड्डा, प्रणिति शिंदे, अरुण गोविल, सुधांशु त्रिवेदी, राजीव शुक्ला, जॉन ब्रिटास और अन्य सांसदों ने भाग लिया।

थरूर बोले: विदेश सचिव के साथ एकजुटता
बैठक के बाद शशि थरूर ने कहा कि कोई औपचारिक प्रस्ताव पारित नहीं हुआ, लेकिन सभी सदस्यों ने विदेश सचिव के प्रति एकजुटता और समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय खुद प्रस्ताव लाने के पक्ष में नहीं था, लेकिन सदस्यों की भावना पूरी तरह विदेश सचिव के साथ है।