मुंबई। भारतीय रेलवे के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज नाम सुरेखा यादव जल्द ही अपनी शानदार पारी को अलविदा कहने जा रही हैं। एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव 36 वर्षों की उल्लेखनीय सेवा के बाद 30 सितंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगी। उनकी विदाई महज एक प्रशासनिक घटना नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनकर हमेशा याद रखी जाएगी।
रेलवे की सच्ची पथप्रदर्शक
सेंट्रल रेलवे ने अपने बयान में कहा, “एशिया की पहली महिला लोको पायलट श्रीमती सुरेखा यादव 36 वर्षों की अद्भुत यात्रा के बाद रिटायर हो रही हैं। उन्होंने अनगिनत बाधाओं को पार कर दिखाया कि कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता। सुरेखा का सफर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।” उनकी रिटायरमेंट की घड़ी भी खास संयोग लेकर आई है यह नवरात्रि के दौरान होगी, जब देशभर में नारी शक्ति का उत्सव मनाया जाएगा।
कौन हैं सुरेखा यादव?
महाराष्ट्र के सतारा में 2 सितंबर 1965 को जन्मीं सुरेखा ने साधारण परिवार से निकलकर असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं। शुरू में उन्होंने शिक्षिका बनने का सपना देखा था, लेकिन तकनीकी रुचि ने उन्हें रेलवे की ओर खींच लिया। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने रेलवे में आवेदन किया और 1986 में सहायक चालक के रूप में चयनित हुईं। तीन साल बाद उन्हें ड्राइवर के पद पर प्रमोशन मिला।

करियर की बड़ी उपलब्धियां
- करियर की शुरुआत मालगाड़ी चलाकर की।
- 2000 में मोटर महिला बनीं।
- 2011 में मेल-एक्सप्रेस ट्रेन चलाने वाली पहली महिला बनीं और उसी साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर का सम्मान मिला।
- प्रतिष्ठित डेक्कन क्वीन जैसी चुनौतिपूर्ण ट्रेनों को सफलतापूर्वक संचालित किया।
- मार्च 2023 में इतिहास रचा, जब उन्होंने वंदे भारत एक्सप्रेस चलाई और ऐसा करने वाली पहली महिला बनीं।
साधारण परिवार से असाधारण सफर तक
सुरेखा के पिता किसान थे और उनका परिवार सामान्य जीवन जीता था। लेकिन सुरेखा ने अपने संघर्ष और मेहनत से वह मुकाम पाया, जिसने पूरे देश की महिलाओं को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का साहस दिया। उनके पति महाराष्ट्र पुलिस में कार्यरत हैं।

प्रेरणा की मिसाल
सुरेखा यादव का सफर न सिर्फ रेलवे, बल्कि पूरे देश की महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। मालगाड़ी से लेकर वंदे भारत तक की उनकी यात्रा इस बात का सबूत है कि अगर संकल्प मजबूत हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।
