लंदन/ओटावा/कैनबरा। फिलिस्तीन के इतिहास में 21 सितंबर 2025 का दिन हमेशा याद रखा जाएगा। 77 साल के लंबे इंतजार के बाद ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को आधिकारिक तौर पर एक स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में मान्यता दे दी है। यह फैसला पश्चिमी देशों की विदेश नीति में बड़े बदलाव का संकेत है और अमेरिका-इजरायल को गहरा कूटनीतिक झटका माना जा रहा है।
ब्रिटेन का ऐतिहासिक ऐलान
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए घोषणा की कि उनका देश अब फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देता है। उन्होंने कहा कि “मध्य पूर्व में जारी संघर्षों और अस्थिरता को देखते हुए शांति और ‘दो-देश समाधान’ को जिंदा रखना बेहद जरूरी है।”
ब्रिटेन का यह कदम उसी नीति का हिस्सा है, जिसका जुलाई 2025 में ऐलान हुआ था। उस समय ब्रिटेन ने साफ कहा था कि यदि इजरायल युद्धविराम, गाजा में मानवीय सहायता की अनुमति और वेस्ट बैंक पर कब्जा खत्म करने जैसे कदम नहीं उठाता, तो फिलिस्तीन को मान्यता दी जाएगी।
कनाडा और ऑस्ट्रेलिया भी साथ
ब्रिटेन से पहले कनाडा फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला पहला G7 देश बना। प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा कि उनका देश इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के लिए शांति और स्थिरता वाला भविष्य चाहता है।
इसके तुरंत बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी यही निर्णय लिया। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने कहा कि यह फैसला शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की एक कोशिश है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फिलिस्तीन के भविष्य में हमास की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
फिलिस्तीन में जश्न, इजरायल की नाराज़गी
फिलिस्तीन के विदेश मंत्री वार्सेन अगाबेकियन शाहीन ने इस फैसले को “ऐतिहासिक कदम” करार दिया और कहा कि इससे फिलिस्तीन आजादी और संप्रभुता के और करीब पहुंच गया है।
दूसरी ओर, इजरायल ने इस मान्यता को “ग़लत और खतरनाक” बताया। इजरायली विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि यह कदम हमास के लिए इनाम जैसा है, जिसने 7 अक्टूबर को हिंसक हमले किए थे। उनका कहना है कि फिलिस्तीन को मान्यता केवल इजरायल और फिलिस्तीन के बीच बातचीत के जरिए मिलनी चाहिए।
अमेरिका की अगली चाल पर टिकी निगाहें
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस घटनाक्रम के बाद अमेरिका क्या रुख अपनाएगा। अमेरिका अब तक फिलिस्तीन को देश का दर्जा देने से बचता आया है और इजरायल का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। लेकिन ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के फैसले से वॉशिंगटन पर दबाव बढ़ना तय है।