भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित किए जाने के बाद पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अब याचना की मुद्रा में बदल गई है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के जवाब में भारत ने यह कड़ा कदम उठाया था, जिसके बाद अब पाकिस्तान भारत से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की गुहार लगा रहा है।
भारत का निर्णायक कदम
पहलगाम में पर्यटकों पर हुए पाकिस्तान-प्रायोजित हमले के बाद भारत ने साफ कर दिया था कि अब आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पर अमल होगा। इसी क्रम में 23 अप्रैल को भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का ऐलान किया। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह फैसला तब तक लागू रहेगा, जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता।
पाकिस्तान की अपील
भारत के इस रुख से असहज होकर अब पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वह इस फैसले पर पुनर्विचार करे। पाकिस्तान ने इसे एक ‘ऐतिहासिक समझौता’ बताते हुए जल आपूर्ति बनाए रखने की मांग की है।
क्या है सिंधु जल संधि?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुए इस समझौते के तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों का जल बंटवारा किया गया था:
- भारत को: रावी, ब्यास और सतलुज
- पाकिस्तान को: सिंधु, झेलम और चिनाब
इस संधि के तहत पाकिस्तान को कुल जल का लगभग 80% हिस्सेदारी मिली हुई है।
पाकिस्तान पर प्रभाव
भारत के निर्णय का असर पाकिस्तान की आर्थिकी और जीवन रेखा पर पड़ा है। सिंधु जल पर पाकिस्तान की लगभग 80% खेती और 30% विद्युत परियोजनाएँ निर्भर हैं। जल आपूर्ति पर रोक लगने की आशंका ने वहां की स्थिति को संकट में डाल दिया है।
नतीजा: झुकता पाकिस्तान
भारत पर दबाव बनाने की कोशिश में जब पाकिस्तान को कोई सफलता नहीं मिली, तो अब उसने कूटनीतिक तरीके से भारत से संवाद की कोशिश की है। एक ओर जहां पहले पाकिस्तानी मंत्री हमले की धमकी दे रहे थे, अब वही नेता शांति और बातचीत की बात कर रहे हैं।
निष्कर्ष
भारत का यह कदम न केवल आतंकवाद के खिलाफ उसकी नीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि अब जल भी एक प्रभावी कूटनीतिक अस्त्र बन चुका है। पाकिस्तान की बदली भाषा और कमजोर स्थिति इस बात की पुष्टि करती है कि भारत की रणनीति असरदार साबित हो रही है।