🎬 23 अप्रैल 1969 को बिहार के एक छोटे से गांव में जन्मे मनोज बाजपेयी आज सिनेमा के सबसे दमदार और सम्मानित अभिनेताओं में गिने जाते हैं। लेकिन उनका सफर चकाचौंध से नहीं, संघर्ष, रिजेक्शन और टूटे सपनों से होकर गुज़रा है। कभी सिर्फ 300 रुपये में गुज़ारा करने वाले इस एक्टर ने, ज़िंदगी से हार मानने की भी सोची थी। लेकिन आज वह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं, और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘सत्या’, ‘अलीगढ़’ जैसी फिल्मों का चेहरा हैं।
💔 जब मनोज बाजपेयी ने सुसाइड करने का मन बनाया
दिल्ली आने के बाद जब लगातार चार बार NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) से रिजेक्शन मिला, तो मनोज बायपेयी टूट गए थे। उनके पास ना पैसे थे, ना ठिकाना, ना कोई पहचान। सिर्फ 300 रुपये में ज़िंदगी काट रहे थे। एक वक्त ऐसा आया जब उन्होंने आत्महत्या करने की ठान ली थी, लेकिन दोस्तों ने उन्हें संभाला और थिएटर से जुड़ने को कहा।
🎭 “सत्या” से मिली पहचान, “गैंग्स ऑफ वासेपुर” से बेमिसाल इज्जत
- 🎥 1994 में बैंडिट क्वीन से शुरुआत की।
- 🎥 1998 में ‘सत्या’ के भीकू म्हात्रे से घर-घर में पहचाने गए।
- 🏆 इस रोल के लिए मिला राष्ट्रीय पुरस्कार।
- 🎥 2012 में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के सरदार खान बनकर आलोचकों और फैंस दोनों का दिल जीत लिया।
💡 Manoj Bajpayee हमें क्या सिखाते हैं?
सपनों को पकड़कर रखो, चाहे कितनी ही बार रिजेक्ट हो जाओ।
ज़िंदगी को खत्म करने से पहले एक बार फिर कोशिश ज़रूर करो—शायद किस्मत तुम्हारे सबसे करीब खड़ी हो।