मुंबई। 13 अक्टूबर 2025 को हिंदी सिनेमा के पहले रोमांटिक सुपरस्टार अशोक कुमार की जन्मतिथि है, जो संयोगवश उनके छोटे भाई और अमर गायक किशोर कुमार की पुण्यतिथि भी है। अशोक कुमार, जिन्हें ‘दादा मुनि’ के नाम से जाना जाता है, न केवल अपने समय के सदाबहार अभिनेता थे, बल्कि बॉलीवुड में ‘कुमार’ उपनाम को लोकप्रिय करने वाले पहले सुपरस्टार भी थे। उनके बाद दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार, राज कुमार, प्रदीप कुमार, उनके भाई अनूप व किशोर कुमार और बंगाली सिनेमा के उत्तम कुमार जैसे सितारों ने इस ‘कुमार’ को अपनाया।
बॉलीवुड में ‘कुमार’ की शुरुआत
अशोक कुमार का मूल नाम कुमुदलाल गांगुली था। 13 अक्टूबर 1911 को बिहार के भागलपुर में जन्मे अशोक कुमार ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की। शुरुआत में उन्हें अभिनय में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन उनकी बहन सती रानी देवी और बहनोई, प्रसिद्ध निर्माता शशधर मुखर्जी की मदद से वे बॉम्बे टॉकीज से जुड़े। पहले लैब सहायक के रूप में काम करने वाले कुमुदलाल को निर्माता हिमांशु रॉय और अभिनेत्री देविका रानी ने 1936 में फिल्म जीवन नैया के लिए चुना। यहीं से देविका रानी ने उनका नाम बदलकर अशोक कुमार रखा, और वे बॉलीवुड के पहले ‘कुमार’ बने। कुछ कथाओं के अनुसार, उनका असली नाम पहले ‘अशोक’ ही था, जिसे बाद में माता-पिता ने बदल दिया, लेकिन फिल्मों में दोबारा ‘अशोक’ नाम चुना गया।

नेचुरल एक्टिंग के जनक
अशोक कुमार को हिंदी सिनेमा का पहला ‘नेचुरल एक्टर’ कहा जाता है। उस दौर में पारसी थिएटर का प्रभाव था, जहां अभिनेता भारी मेकअप और ऊंचे स्वर में संवाद बोलते थे। लेकिन अशोक कुमार ने अपनी सादगी भरी सूरत और शांत संवाद अदायगी से दर्शकों का दिल जीता। उनकी पहली फिल्म जीवन नैया (1936) में देविका रानी के साथ उनकी जोड़ी ने तहलका मचाया। इसके बाद इज्जत, सावित्री, और निर्मला जैसी फिल्मों में उनकी अभिनय प्रतिभा चमकी। उनकी जोड़ी लीला चिटनिस (कंगन, बंधन, झूला) और मीना कुमारी (परिणीता, बिराज बहू, पाकीजा, बंदिश) के साथ खूब सराही गई।
‘दादा मुनि’ नाम की कहानी
अशोक कुमार को ‘दादा मुनि’ क्यों कहा गया, इसकी कहानी भी दिलचस्प है। उनकी बहन सती रानी उन्हें प्यार से ‘मणि’ (चमकता रत्न) कहती थीं। बंगाली परंपरा में ‘मणि’ को बड़े भाई के लिए ‘दादा मणि’ कहकर पुकारा गया, जो बाद में ‘दादा मुनि’ बन गया। उनकी सादगी, करिश्माई व्यक्तित्व और हर तरह के किरदार को जीवंत करने की कला ने उन्हें यह सम्मान दिया।

बॉलीवुड और बॉम्बे टॉकीज की झलक
अशोक कुमार की शुरुआती जिंदगी को समझने के लिए अमेजन प्राइम की वेब सीरीज जुबली देखी जा सकती है। यह सीरीज बॉम्बे टॉकीज के उत्थान और पतन की काल्पनिक कहानी पेश करती है। इसमें हिमांशु रॉय को श्रीकांत रॉय, देविका रानी को सुमित्रा कुमारी और अशोक कुमार को मदन कुमार के रूप में दिखाया गया है। हालांकि सीरीज इसका दावा नहीं करती, लेकिन इसे बॉम्बे टॉकीज की कहानी से प्रेरित माना जाता है।
हरफनमौला कलाकार
अशोक कुमार ने न केवल अभिनय, बल्कि गायन और निर्माण में भी योगदान दिया। शुरुआती दौर में जब पार्श्वगायन शुरू नहीं हुआ था, वे खुद गीत गाते थे, जैसे मैं बन का पंछी बन बन डोलूं रे। उन्होंने महल (मधुबाला के साथ) जैसी फिल्मों का निर्माण भी किया। 1943 में उनकी फिल्म किस्मत ने बॉक्स ऑफिस पर एक करोड़ की कमाई कर इतिहास रचा। बाद में उन्होंने पिता, चाचा, दादा और खलनायक जैसे चरित्र किरदारों को बखूबी निभाया। टीवी सीरियल हम लोग में भी उनकी मौजूदगी दर्शकों को बांधे रखती थी।

सम्मान और विरासत
अशोक कुमार ने करीब 300 फिल्मों में काम किया। उनकी कला को दादासाहेब फालके पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 10 दिसंबर 2001 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी रोमांटिक और नेचुरल अभिनय शैली आज भी बॉलीवुड के लिए प्रेरणा है। 13 अक्टूबर को जहां अशोक कुमार की जन्मतिथि मनाई जाती है, वहीं किशोर कुमार को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया जाता है। दोनों भाइयों ने हिंदी सिनेमा को अनमोल योगदान दिया।
