मुंबई। भारतीय संगीत जगत में अनुराधा पौडवाल एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने यह साबित किया कि सच्ची लगन और समर्पण से बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के भी संगीत की ऊँचाइयाँ हासिल की जा सकती हैं। 27 अक्टूबर 1954 को कर्नाटक के कारवार जिले में जन्मी और मुंबई में पली-बढ़ीं अनुराधा पौडवाल (असली नाम – अलका नाडकर्णी) ने अपनी मीठी और भावपूर्ण आवाज से हिंदी फिल्म संगीत को एक नई पहचान दी।
लता मंगेशकर से सीखा संगीत, बिना किसी गुरु के बनाई अपनी राह
अनुराधा पौडवाल को बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि थी, लेकिन उन्हें कभी औपचारिक रूप से संगीत की शिक्षा नहीं मिली। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि वे लता मंगेशकर के गीत सुनकर संगीत सीखती थीं। लता दीदी के सुरों की बारीकियों को समझकर, उनकी शैली को आत्मसात करते हुए उन्होंने अपने स्वर को मांजा और धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान बनाई।

फिल्म ‘अभिमान’ से करियर की शुरुआत
अनुराधा पौडवाल का फिल्मी सफर 1973 में फिल्म ‘अभिमान’ से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने जया भादुरी के लिए एक छोटा सा श्लोक गाया था। यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई। इसके बाद उन्होंने ‘उधार का सिंदूर’, ‘लैला मजनू’, ‘सरगम’, ‘जानेमन’ और ‘एक ही रिश्ता’ जैसी फिल्मों में अपने स्वर से जादू बिखेरा।
90 का दशक — करियर का स्वर्ण युग
1990 का दशक अनुराधा पौडवाल के करियर का स्वर्णिम काल रहा। फिल्मों ‘आशिकी’, ‘दिल है कि मानता नहीं’, ‘बेटा’, ‘हमसे है मुकाबला’ और ‘मेहरबान’ के गीतों ने उन्हें हर घर में लोकप्रिय बना दिया।

उनकी मधुर आवाज़ और भावनात्मक अभिव्यक्ति ने श्रोताओं के दिलों को गहराई तक छू लिया। अनुराधा पौडवाल को लगातार तीन बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया जो उनकी प्रतिभा और लोकप्रियता का प्रमाण है।
भक्ति संगीत की दिशा में बदलाव
1997 में पति अरुण पौडवाल के निधन और टी-सीरीज़ संस्थापक गुलशन कुमार की हत्या के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि अब वे केवल भक्ति संगीत को ही अपना माध्यम बनाएंगी।
उनके भक्ति गीतों और भजनों ने भारत के हर कोने में आस्था का नया संचार किया। “जय श्री राम”, “ओम जय जगदीश हरे” और “श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी” जैसे उनके भजन आज भी हर भक्त के दिल में बसते हैं।

554 फिल्मों और कई भाषाओं में सुरों का जादू
अपने शानदार करियर में अनुराधा पौडवाल ने लगभग 554 फिल्मों में गीत गाए। हिंदी के अलावा उन्होंने पंजाबी, मराठी, बंगाली, तमिल, तेलुगु और नेपाली भाषाओं में भी अपनी आवाज दी। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें भारतीय संगीत की सबसे सशक्त महिला गायिकाओं में शामिल किया।
समर्पण और सादगी की मिसाल
अनुराधा पौडवाल की यात्रा इस बात का प्रमाण है कि संगीत केवल रियाज का नहीं बल्कि दिल का विषय है। उन्होंने अपनी सादगी, मधुरता और समर्पण से लाखों लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई। आज भी उनकी आवाज भक्तों और संगीत प्रेमियों को समान रूप से प्रेरित करती है।
