रायपुर: छत्तीसगढ़ में खस (वेटिवर) की खेती को मिलेगा बढ़ावा, किसानों को मिलेगा आर्थिक लाभ
रायपुर, छत्तीसगढ़ में खुशबूदार खस (वेटिवर) की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन आज राजधानी रायपुर स्थित औषधीय पादप बोर्ड कार्यालय के सभागार में किया गया। ‘वेटिवर फार्मिंग टेक्नोलॉजी’ विषय पर आयोजित इस कार्यशाला की अध्यक्षता औषधीय एवं पादप बोर्ड के अध्यक्ष श्री विकास मरकाम ने की।
श्री मरकाम ने कहा कि प्रदेशवासियों को औषधीय पौधों के संरक्षण, संवर्धन और कृषिकरण से जोड़ा जाए ताकि वे आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें। उन्होंने बताया कि औषधीय पादपों की खेती करने वाले किसानों को उत्पादन का उचित बाजार मूल्य दिलाने के लिए प्रयास तेज किए जाएंगे।
खस तेल की कीमत 15 से 20 हजार रुपये प्रति लीटर
वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने कार्यशाला में बताया कि खस की जड़ से प्राप्त होने वाला तेल अत्यंत मूल्यवान होता है, जिसकी कीमत 15,000 से 20,000 रुपये प्रति लीटर तक है। इसका उपयोग इत्र, अगरबत्ती, साबुन, औषधि निर्माण और सौंदर्य प्रसाधनों सहित एरोमा उद्योगों में किया जाता है। इसके अलावा, खस की जड़ों से चटाई, टोकरियां, पाउच, खिड़की आवरण और छप्पर निर्माण जैसे विविध उपयोग भी होते हैं।
कम पानी में भी होती है खेती, पर्यावरण के लिए भी लाभकारी
बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री जे.ए.सी.एस. राव ने बताया कि खस की खेती कम पानी वाले क्षेत्रों में भी आसानी से की जा सकती है। यह पौधा सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में उपजाऊ होता है और इसकी खेती से ग्रामीण समुदायों को आर्थिक लाभ मिल सकता है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनूप कालरा (पूर्व वैज्ञानिक, सीमैप लखनऊ) ने बताया कि खस की जड़ें मिट्टी के कटाव को रोकने में अत्यंत उपयोगी होती हैं और यह पौधा सभी जलवायु परिस्थितियों में जीवित रह सकता है। वहीं सीमैप बेंगलुरु के वैज्ञानिक डॉ. वी. सुन्देशरन ने कहा कि वेटिवर की गहराई तक जाने वाली जड़ें भूमि की संरचना को सुधारने में सहायक होती हैं और यह पौधा सूखा प्रतिरोधक होने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है।
1 एकड़ में मिलती है 1.5 टन सूखी जड़
वैज्ञानिकों ने बताया कि एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 1.5 टन सूखी खस जड़ प्राप्त होती है, जिससे लगभग 1.5 किलोग्राम तेल निकाला जा सकता है। सूखी जड़ों से तेल निकालने की प्रक्रिया में 48 से 78 घंटे का समय लगता है।
कार्यशाला में छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे।