गरियाबंद, गरियाबंद जिले के पितईबंद रेत खदान में पत्रकारों के साथ हुई बर्बर मारपीट की घटना ने पूरे छत्तीसगढ़ को झकझोर कर रख दिया है। 9 जून को अवैध रेत खनन की सूचना पर रिपोर्टिंग करने पहुंचे पत्रकारों पर खनन माफियाओं ने जानलेवा हमला कर दिया। कैमरे और मोबाइल तोड़ डाले गए, पत्रकारों को दौड़ाकर पीटा गया। यह हमला न केवल शारीरिक था, बल्कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर सीधा हमला था।
घटना के बाद पूरे जिले में पत्रकारों का आक्रोश फूट पड़ा। सैकड़ों की संख्या में पत्रकारों ने एकजुट होकर जिला कलेक्ट्रेट के सामने प्रदर्शन किया और कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मांग की गई कि सात दिन के भीतर आरोपियों की गिरफ्तारी हो और रेत माफियाओं पर कठोर कार्यवाही की जाए। साथ ही खनिज विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत की जांच कर उन्हें हटाने की मांग भी की गई।
प्रदर्शनकारी पत्रकारों ने चेतावनी दी कि यदि सात दिनों के भीतर ठोस कार्यवाही नहीं होती, तो जिलेभर में चक्काजाम और उग्र आंदोलन किया जाएगा। धरने में राजिम, मैनपुर, देवभोग, छुरा, फिंगेश्वर और रायपुर से भी पत्रकार पहुंचे और एक स्वर में कहा—“हम डरे नहीं हैं, टूटेंगे नहीं, अब रुकेंगे भी नहीं।”
इस आंदोलन को छत्तीसगढ़ पत्रकार महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष सुनील यादव ने भी समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि यह हमला केवल गरियाबंद के पत्रकारों पर नहीं, बल्कि पत्रकारिता की आत्मा पर है। अगर न्याय नहीं मिला तो आंदोलन की आग पूरे प्रदेश में फैलेगी।
जिला कलेक्टर ने पत्रकार प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया है कि मामले को गंभीरता से लिया गया है और सात दिनों के भीतर जांच पूरी कर आरोपियों की गिरफ्तारी की जाएगी। वहीं पुलिस अधीक्षक निखिल राखेचा ने बताया कि कुछ संदिग्ध वाहनों और खदान संचालकों के खिलाफ कार्यवाही की जा चुकी है और जांच के आधार पर जल्द ही गिरफ्तारियां होंगी।
हालांकि पत्रकारों की चिंता इस बात को लेकर बनी हुई है कि कहीं यह मामला भी अन्य घटनाओं की तरह ठंडे बस्ते में न चला जाए।
अब निगाहें प्रशासन पर टिकी हैं। यदि तय समयसीमा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह मान लेना होगा कि लोकतंत्र में पत्रकारिता अब माफिया और मिलीभगत के बीच घुट रही है।