छत्तीसगढ़ की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान का गौरव बस्तर दशहरा गुरुवार 24 जुलाई से पारंपरिक पाट जात्रा पूजा के साथ विधिवत रूप से आरंभ होगा। हरेली अमावस्या के पावन अवसर पर मां दंतेश्वरी मंदिर परिसर में इस 75 दिवसीय अद्वितीय पर्व की शुरुआत की जाएगी, जो भारत के सबसे लंबे और ऐतिहासिक पर्वों में गिना जाता है।
यह पर्व बस्तर अंचल की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को समर्पित है और सदियों से यहां की जनजातीय परंपराओं, धार्मिक विश्वासों और सामाजिक एकता का प्रतीक बना हुआ है। बस्तर दशहरा केवल उत्सव नहीं, बल्कि पूरे बस्तर की आत्मा है — जिसमें संस्कृति, परंपरा, कारीगरी और जनभागीदारी का अद्भुत समावेश होता है।
पाट जात्रा से होगी शुरुआत
शुभारंभ के दिन पारंपरिक मांझी-चालकी, मेम्बर-मेम्बरीन, पुजारी, पटेल, नाईक-पाईक और सेवादार रथ निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिए ठुरलू खोटला रस्म अदा करेंगे। दशहरा समिति ने सभी ग्रामीणों, परंपरागत प्रतिनिधियों और नागरिकों से इस ऐतिहासिक पूजा में सहभागिता का आह्वान किया है।
पूर्ण आयोजन का विस्तृत कार्यक्रम
👉 5 सितम्बर (शुक्रवार): डेरी गड़ाई पूजा
👉 21 सितम्बर (रविवार): काछनगादी पूजा
👉 22 सितम्बर (सोमवार): कलश स्थापना
👉 23 सितम्बर (मंगलवार): जोगी बिठाई पूजा
👉 24 से 29 सितम्बर: नवरात्रि पूजा और रथ परिक्रमा
👉 30 सितम्बर (मंगलवार): महाअष्टमी, निशा जात्रा
👉 1 अक्टूबर (बुधवार): कुंवारी पूजा, जोगी उठाई, मावली परघाव
👉 2 अक्टूबर (गुरुवार): भीतर रैनी और रथ परिक्रमा
👉 3 अक्टूबर (शुक्रवार): बाहर रैनी पूजा
👉 4 अक्टूबर (शनिवार): काछन जात्रा एवं दोपहर में मुरिया दरबार
👉 5 अक्टूबर (रविवार): कुटुम्ब जात्रा में ग्राम्य देवी-देवताओं की विदाई
👉 7 अक्टूबर (मंगलवार): मावली माता की डोली विदाई के साथ पर्व का समापन
एक पर्व, जो केवल उत्सव नहीं – विरासत है
बस्तर दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि बस्तरवासियों की आस्था, इतिहास और जीवनशैली का सजीव प्रतीक है। रथ निर्माण से लेकर मावली डोली विदाई तक हर रस्म, हर विधि जनजातीय परंपराओं की गरिमा को दर्शाती है। इस पर्व में समाज के सभी वर्गों की सहभागिता, आत्मीयता और भक्ति देखने को मिलती है।
बस्तर दशहरा 2025, न केवल श्रद्धालुओं के लिए विशेष है, बल्कि वह दुनिया के सामने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक समृद्धि को एक बार फिर गौरवपूर्ण रूप में प्रस्तुत करेगा।