क्या आपने कभी सोचा है कि कीबोर्ड पर अक्षर इस बेतरतीब क्रम में क्यों होते हैं और ABCD क्रम में क्यों नहीं? QWERTY लेआउट के पीछे एक रोचक और व्यावहारिक इतिहास छिपा है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
Contents
QWERTY लेआउट का इतिहास
- शुरुआत का डिज़ाइन
1868 में क्रिस्टोफर लैथम शोल्स ने पहला व्यावसायिक टाइपराइटर डिज़ाइन किया। उस समय, टाइपराइटर पर अक्षर ABCD क्रम में लगाए गए थे।
लेकिन जब लोग तेज़ी से टाइप करते थे, तो टाइपराइटर की कुंजियां (keys) आपस में टकराकर फंस जाती थीं। - समस्या का समाधान
इस समस्या को हल करने के लिए, शोल्स और उनके साथियों ने अक्षरों को इस तरह व्यवस्थित किया कि अक्सर इस्तेमाल होने वाले अक्षर पास-पास न हों। इस डिज़ाइन को QWERTY नाम दिया गया, जो कीबोर्ड की ऊपरी पंक्ति के पहले छह अक्षरों से लिया गया है: Q, W, E, R, T, Y।
QWERTY लेआउट कैसे लोकप्रिय हुआ?
- 1873 में रेमिंगटन कंपनी ने QWERTY लेआउट के साथ पहला सफल टाइपराइटर बाजार में उतारा।
- धीरे-धीरे, टाइपराइटर पर काम करने वाले लोग इस लेआउट के आदी हो गए।
- जब कंप्यूटर कीबोर्ड का आविष्कार हुआ, तो इसी लेआउट को अपनाया गया क्योंकि लोग पहले से इससे परिचित थे।
QWERTY के विकल्प
- ड्वोरक लेआउट
1930 के दशक में डॉ. ऑगस्ट ड्वोरक ने एक नया कीबोर्ड डिज़ाइन बनाया। इसमें अक्सर इस्तेमाल होने वाले अक्षरों को इस तरह व्यवस्थित किया गया था कि टाइपिंग तेज़ और सहज हो सके।
हालांकि, QWERTY की लोकप्रियता के कारण यह लेआउट ज्यादा नहीं चल पाया। - कोलमक लेआउट
यह एक और विकल्प है, जिसे 1960 के दशक में विकसित किया गया। इसे टाइपिंग में दक्षता बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
आज के समय में QWERTY की प्रासंगिकता
आज भी QWERTY लेआउट सबसे अधिक उपयोग में है, क्योंकि यह एक मानक बन चुका है। हालांकि, तेज़ टाइपिंग या विशेष उपयोग के लिए अन्य लेआउट भी उपलब्ध हैं, लेकिन QWERTY की विरासत कायम है।
निष्कर्ष
QWERTY लेआउट का डिज़ाइन पूरी तरह व्यावहारिक समस्याओं को हल करने के लिए बनाया गया था। यह तकनीक और मानवीय आदतों का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस लेआउट ने टाइपिंग की दुनिया में क्रांति ला दी और आज भी इसका उपयोग व्यापक रूप से हो रहा है।