नई दिल्ली: जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पवित्र पर्व, 9 अगस्त को पूरे देश में उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। इस दिन मंदिरों और घरों में विशेष पूजा-अर्चना के साथ भगवान कृष्ण को 56 भोग चढ़ाने की परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि आखिर 56 भोग ही क्यों चढ़ाए जाते हैं? इसके पीछे की कहानी भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत को उठाने की पौराणिक कथा से जुड़ी है। आइए जानते हैं इस अनूठी परंपरा की कहानी।
गोवर्धन पर्वत और इंद्रदेव की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रज में एक बार लोग बारिश के देवता इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए भव्य पूजा की तैयारी कर रहे थे। बाल गोपाल श्रीकृष्ण ने अपने पिता नंद बाबा से इसका कारण पूछा। नंद बाबा ने बताया कि इंद्रदेव की पूजा से अच्छी बारिश और समृद्ध फसल प्राप्त होती है। इस पर कृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि इंद्रदेव से ज्यादा गोवर्धन पर्वत का महत्व है, जो उनकी फसलों, फल-सब्जियों और पशुओं के लिए चारा प्रदान करता है।

कृष्ण की सलाह मानकर ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की, जिससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए। उन्होंने ब्रज पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे बाढ़ जैसी स्थिति बन गई। ब्रजवासियों और उनके पशुओं को बचाने के लिए बाल कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक उठाए रखा। इस दौरान सभी लोग और पशु पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे।
56 भोग की शुरुआत
सात दिन बाद जब इंद्रदेव का क्रोध शांत हुआ और बारिश रुकी, तब ब्रजवासियों ने देखा कि भगवान कृष्ण ने इन सात दिनों में कुछ भी नहीं खाया था। माता यशोदा, जो अपने लाडले कान्हा को दिन में आठ बार भोजन कराती थीं, को यह देखकर बहुत दुख हुआ। अपने प्रिय कृष्ण के प्रति प्रेम और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए माता यशोदा और ब्रजवासियों ने मिलकर 56 प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए। यह संख्या सात दिनों और दिन में आठ बार भोजन से आई (7 दिन x 8 भोजन = 56 भोग)। तभी से जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को 56 भोग चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
56 भोग में क्या-क्या शामिल
56 भोग में विभिन्न प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं, जो भगवान कृष्ण के प्रिय पदार्थों को दर्शाते हैं। इनमें मिठाइयां, नमकीन, फल, अनाज, दूध से बने व्यंजन और पेय शामिल हैं। पारंपरिक 56 भोग की सूची में माखन, मिश्री, लड्डू, पेड़ा, रबड़ी, पूरी, कचौरी, हलवा, खिचड़ी, मौसमी फल, ठंडाई, और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन शामिल हैं। ये भोग भगवान कृष्ण के प्रति भक्तों की भक्ति और प्रेम को व्यक्त करते हैं।

जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के साथ-साथ उनकी लीलाओं और भक्ति की भावना को स्मरण करने का अवसर है। 56 भोग की परंपरा न केवल भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाती है, बल्कि यह ब्रज की संस्कृति और गोवर्धन पर्वत की महत्ता को भी उजागर करती है। इस जन्माष्टमी पर देशभर के मंदिरों और घरों में भक्त इस परंपरा को निभाते हुए भगवान कृष्ण की पूजा करेंगे और उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त करेंगे।