डेस्क न्यूज। सावन का महीना भारतीय लोकजीवन में सिर्फ बारिश और हरियाली का नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का उत्सव है। खासकर महिलाओं के लिए यह समय एक विशेष उत्साह और पारंपरिक जुड़ाव का प्रतीक बन जाता है, जब पेड़ों की शाखों पर झूलते झूलों के संग गीतों की मिठास गूंजती है। सावन में झूला झूलना न केवल एक मनोरंजक गतिविधि है, बल्कि इसके पीछे भारतीय संस्कृति की गहराई से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं।
प्रकृति की गोद में उत्सव की अनुभूति
सावन में धरती हरियाली से लहलहा उठती है, और पेड़ों की मजबूत शाखाएं झूलों के लिए आदर्श स्थान बन जाती हैं। महिलाएं पेड़ों पर झूले बांधकर उस पर बैठती हैं और हवा के झोंकों के साथ झूलते हुए लोकगीत गाती हैं। यह दृश्य न केवल सुंदर होता है, बल्कि पर्यावरण के साथ गहरे जुड़ाव को भी दर्शाता है। यह एक तरह से प्रकृति का उत्सव है, जिसमें महिलाएं खुले आकाश तले, बारिश की बूँदों संग जीवन की ताजगी को महसूस करती हैं।
सामाजिक मेलजोल और स्त्री-सशक्तिकरण की झलक
परंपरागत भारतीय समाज में महिलाओं का बाहरी मेलजोल सीमित होता था, लेकिन सावन में झूला झूलना उनके लिए आत्म-प्रकट करने और सामाजिक जुड़ाव का महत्वपूर्ण जरिया बनता है। सहेलियों के साथ सज-धज कर, समूह में बैठकर झूला झूलना और लोकगीत गाना न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह भावनात्मक जुड़ाव और आपसी समझ को भी प्रगाढ़ करता है। यह महीना महिला सशक्तिकरण का भी प्रतीक बनता जा रहा है, जिसमें ग्रामीण से लेकर शहरी महिला तक अपनी सांस्कृतिक पहचान को गर्व से जीती है।

धार्मिक आस्था और पौराणिक कहानियों से जुड़ा भाव
सावन का महीना देवी पार्वती और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस दौरान देवी पार्वती अपने मायके आती हैं और उनकी सखियाँ उन्हें झूला झुलाती हैं। आज भी महिलाएं इस परंपरा को निभाते हुए भक्ति-भाव से झूला झूलती हैं और लोकगीतों के माध्यम से शिव-पार्वती के प्रेम का गुणगान करती हैं। कुछ जगहों पर यह परंपरा राधा-कृष्ण की लीलाओं से भी जुड़ती है। इस श्रद्धा और भावनात्मक आस्था ने इस लोकपरंपरा को धार्मिक पवित्रता से जोड़ दिया है।
तन-मन को सुकून देने वाली पारंपरिक थेरेपी
आज के समय में जब मानसिक तनाव और अकेलेपन की समस्याएं बढ़ रही हैं, सावन में झूला झूलना एक प्रकार की प्राकृतिक थेरेपी बनकर उभरती है। खुली हवा में झूला झूलना, हरियाली के बीच समय बिताना, और लोकगीतों की मधुरता तनाव दूर कर शांति का अनुभव देती है। यह न केवल शरीर को ऊर्जा देता है, बल्कि मन को भी सुकून प्रदान करता है।

लोकगीतों में छिपी सांस्कृतिक जड़ें
सावन के झूले सिर्फ रस्सियों के नहीं होते, ये तो गीतों और भावनाओं से जुड़े होते हैं। ‘कजरी’, ‘सावन गीत’, और पारंपरिक लोक धुनें महिलाओं की भावनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। ये गीत ना सिर्फ मनोरंजन हैं, बल्कि हमारे लोक साहित्य, संस्कृति और जीवन दृष्टिकोण को भी संरक्षित करते हैं। गांवों में आज भी महिलाएं सामूहिक रूप से इन्हें गाकर अगली पीढ़ी को यह सांस्कृतिक विरासत सौंपती हैं।